संतबानी संग्रह | Santbani Sangrah
श्रेणी : साहित्य / Literature, हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कबीर साहिब | १५
/ (चंद) |
दुखित तुम बिन रटत নিবি दिन, मृगट दरसन दीजिये ।
बिनती सुन प्रिय स्वामियाँ, बच्ि जाउँ बिलेंब न कीजिये ॥१॥
( चौपाई ) हे ,
अन्न न भावे नींद न आवे ! बार बार मोहि बिरह सतावे ॥
( छंद ) |
विविध विधि हम भई ब्याकुल, बिन देसे जिव नारहे।
तपत तन जिव उठत भाला, कठिन दुख अब को सहे ॥२॥
( चौपाई )
तैनन चलत सजल जल धारा । निप्ति दिन पंथ निहारों तुम्हारा ॥
- (छद )-
गुन ओगुन अपराध छिप्ता करि, ओझुन कछु न बिचारिये ।
पतित-पावन राखु परमति' , अपना पन न बिसारिये ॥३॥
( चौपाई )
$
गृह आँगन मोहि कछु न सुहाई, बच मई ओर फिस्यो न जाई ॥
, (छंद )
नैन भरि भरि रहे निरखत, निमिख नेह न तुड़ाइये।
बारे दीजे बंदी-छोड़ा, अब के बंद छुड़ाइये ॥४॥
योपा
(चौष) .
मीन मरे जेसे बिन नीरा। ऐसे तुम बिन दुखित सरीरा ॥
(छंद)
दास कबीर यह करत विनती, सहा पुरुष अव मानिये।
दया कीजे दरस दीजे, अपना करि मोहि जानिये ॥५॥
है - (२)
दरमाँदे ठादे दरबार ॥ टेक ॥
तुम बिन सुरत करे को मेरी, दरसन दीजे खोलि किवार ॥१॥
तुम ही घनी उदार दयात् , सवनन सुनियत्त सुजस तुम्हार ॥२॥
(१) बच्च मत या साव |
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