हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएं | Hindi Kavya Ki Kalamayi Tarikayein

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएं  - Hindi Kavya Ki Kalamayi Tarikayein

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about करुणाशंकर शुक्ल - Karunashankar Shukl

Add Infomation AboutKarunashankar Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मीरा [ ११ खींचती है । मीरा फा हृदय प्रियतम के वियोगसे व्याल तो दै, किन्तु उसमे शोर श्रौर विपाद्‌ के लिये स्थान नहीं । मीरा श्रपने प्रियत्तम के चिर मे उदास श्रौर निराश न होकर उन्माद्‌ फे आनन्द में नाचती और गाती है । दूसरे शब्दों में यह फद्दना चाहिये, किं चियोग फी वेदना ने न्द्‌ एतना अधिक তুলা হী वना दिया है, कि थे सतवाली घन गई हैं, और उनकी सारी वियोग- बेदना आनन्द के रूप में परिणत द्वो उठी है | मीरा जब इस आनन्द! फो लकी! अगि चलती है, तव वेफिर किसी फी चिन्ता नहीं फरती। वे इसी आनन्द के उन्म्राद मे राज-प्रासाद फो छोड़ देती हैं, विप का प्याला ओठों से लगा लेती हैं, और ठाल लेती हैं, सर्पों फी गले मे माला | वास्तव में वात तो यहू थी, कि वहाँ मीरा का अस्तित्त्व दी नहीं धा। वे आनन्द में इतना विभोर हो 'उठो थीं, कि उन्हे अस्तित्त्त का ज्ञान ही नहीं था | वे एफ पगली फे सख्य थीं) उन्हे न श्रपनी चिन्ता थी, ओर न ससार की। ससार की सीमाओं और वू सलाझों का उसडी दृष्टि में कुद्ध भी मूल्य नहीं घा।वे सघ को तोड कर अपने प्रियतम के पास जाना चादती थीं। प्रियतम की लो उनके हृदय में इस प्रकार समाई एई थी, फि उसके सम उन्हे समार में फुद दिखाई ही नहीं देता था। मीरा फी इस एकाग्रता फा चित्र उनके इस पढ में देखिये । आली रे मेरे मेनन यान ष्टी] चित्त चट मेरे माधुरी मूरति टर विच आन गटठी | स्य कीर पन्य निदारू, अपन অল বনী]




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now