क्षमा | Kshama
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इकट्ठा मिली थी । रजनी ने प्रपने छात्-वृत्ति के स्पयों में से रुपये दिया।
ककर छुडाया । पअ्शर्फी की माता को दिया । उनसे कफश छुडाने का
सेंद वतताया पर प्रउत्ती माँ से छिपा रखता | विमता ने शतश आशीर्दाद
दिया । उसके इस व्यवहार से गद्गद हो गयी | कुछ वोल न सकी, बोले
कैसे ? दीनता ने उसके मुख पर ताला लगा दिया था । जब-जव रुपयो या
किसी वस्तु की आवश्यकता पडत्ती वह उसे दे दिया करता था। उसे बह
अपना परम-अनस्य-मित्र अपना सर्वस्व मात चुका था ।
एक दिन फुटवाल खेलते समय रजनी आहत हुत्रा । भ्रशर्फी ने उसे
देवा पर आँख उठाकर भी नहीं पूछा । घर चल दिया । कक्षा के अन्य
छान तथा अध्यापकों ने उसके दवा का उपचार किया। अस्पताल पहु-
चाया। वहाँ वह पूरे ३ दिनों मे स्वस्थ हुआ । घर पर रजनी के माता-
पित्ता व्यग्र हौ उढे1 दोनो ममाचार पूछने अशर्फी के घर पहुँचे । उसने
कुछ भी नहीं बतलाया । भ्रजय की व्यग्रता चर्म पीमा को पार कर गयी ।
रातो रात बेयुघ होकर स्कूल पहुँचे । वहाँ से पता लगाकर श्रस्पताल पहुँचे।
ग्रजयकुमार--वैटा ! तुमने अ्रशर्फीलाल से घर क्यो नहीं कहला
भेजा ? उससे पूछा दो उसने उत्तर दिया कि मैं कुछ नही जानता ।
रजनी--मैने ही उसे रोक दिया था कि तुम इस समाचार को माता-
पिता से मत कहना नही तो वे लोगं सुनेगे तो न्यर्थं ववरायेगे ।
शअ्जयकुमार--हाँ वेटा | तुमने तो वडी चालाकी की पर तुम्हारी
माता वहुत घवरा उठी । में भी अपने होश में नही रहा । दौडा-दौडा स्कूल
आपा, वहाँ से पता लगाकर यहाँ आया । छात्रो तथा श्रघ्यापको ने অন
कुमार् को काफी सन्तोप दिलाया । अजयकुमार वहाँ से घर लौटा और
भ्रपनी स्त्री से सारा समाचार सुनाया । वह व्यग्र हो उठी और रोने लगी ।
उसे समभा-चुझा कर श्रजय ने शान्त किया ।
तीन दिनो के बाद रजनी स्वस्थ होकर गृह पहुंचा 1 उमके वहत ने
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