क्षमा | Kshama

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Kshama by रघुनन्दन तिवारी 'निर्मूल' - Raghunandan Tiwari 'Nirmul'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इकट्ठा मिली थी । रजनी ने प्रपने छात्-वृत्ति के स्पयों में से रुपये दिया। ककर छुडाया । पअ्शर्फी की माता को दिया । उनसे कफश छुडाने का सेंद वतताया पर प्रउत्ती माँ से छिपा रखता | विमता ने शतश आशीर्दाद दिया । उसके इस व्यवहार से गद्गद हो गयी | कुछ वोल न सकी, बोले कैसे ? दीनता ने उसके मुख पर ताला लगा दिया था । जब-जव रुपयो या किसी वस्तु की आवश्यकता पडत्ती वह उसे दे दिया करता था। उसे बह अपना परम-अनस्य-मित्र अपना सर्वस्व मात चुका था । एक दिन फुटवाल खेलते समय रजनी आहत हुत्रा । भ्रशर्फी ने उसे देवा पर आँख उठाकर भी नहीं पूछा । घर चल दिया । कक्षा के अन्य छान तथा अध्यापकों ने उसके दवा का उपचार किया। अस्पताल पहु- चाया। वहाँ वह पूरे ३ दिनों मे स्वस्थ हुआ । घर पर रजनी के माता- पित्ता व्यग्र हौ उढे1 दोनो ममाचार पूछने अशर्फी के घर पहुँचे । उसने कुछ भी नहीं बतलाया । भ्रजय की व्यग्रता चर्म पीमा को पार कर गयी । रातो रात बेयुघ होकर स्कूल पहुँचे । वहाँ से पता लगाकर श्रस्पताल पहुँचे। ग्रजयकुमार--वैटा ! तुमने अ्रशर्फीलाल से घर क्यो नहीं कहला भेजा ? उससे पूछा दो उसने उत्तर दिया कि मैं कुछ नही जानता । रजनी--मैने ही उसे रोक दिया था कि तुम इस समाचार को माता- पिता से मत कहना नही तो वे लोगं सुनेगे तो न्यर्थं ववरायेगे । शअ्जयकुमार--हाँ वेटा | तुमने तो वडी चालाकी की पर तुम्हारी माता वहुत घवरा उठी । में भी अपने होश में नही रहा । दौडा-दौडा स्कूल आपा, वहाँ से पता लगाकर यहाँ आया । छात्रो तथा श्रघ्यापको ने অন कुमार्‌ को काफी सन्तोप दिलाया । अजयकुमार वहाँ से घर लौटा और भ्रपनी स्त्री से सारा समाचार सुनाया । वह व्यग्र हो उठी और रोने लगी । उसे समभा-चुझा कर श्रजय ने शान्त किया । तीन दिनो के बाद रजनी स्वस्थ होकर गृह पहुंचा 1 उमके वहत ने




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