जवाहर-ज्योति | Jawahar-Jyoti
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहाचर्य ] [ &
हैं ससार मे हीरा-मोती पहनने वालों का आदर देखकर
कितनेक लोग सच्चे हीरा-मोतियो के अभाव मे, आदर-सत्कार
पाने के लिए नकली हीरा-मोती पहनते हँ । नकली चीरा-
मोती पहनने का তলক্ষা उद्देश्य सिर्फ यही होता है कि नखरे
करके किसी प्रकार लोगो को घोखा दिया जाये ।, इसी प्रकार
ससार मे बरह्मचारी का आदर-सन्मान होते देखकर उसी प्रकार
का आदर-सन्मान पाने की लालसा से कु लोग नाममात्र
के ब्रह्मचारी बन बैठते हैं- वे ब्रह्मचय का पालन नही करते।
ऐसे ब्रह्मचर्य को शास्त्रकार 'नाम-ब्रह्मचर्य ” कहते है। यह नाम-
ब्रह्मचयं की वात हुई । ৮
जो स्वय ब्रह्मचये का पालन नही कर-सकता किन्तु
ब्रह्मचयं या ब्रह्मचारी कौ मृति बनाकर ओर उससे काम
चल जायेगा--एेसा सोचकर, सूति की स्थापना करके उसे
मानता है वहु स्थापना-ब्रह्मचारी ह । उसके इस ब्रह्मचर्य को
स्थापना-ब्रह्मचर्य कहते है । इस स्थापना-ब्रह्मचर्य से भी कोई
विशेष लाभ नहीं होता । लाभ तो तभी हो सकता है। जब
कि जिस गुण के कारण तुम उसकी मूर्ति बनाकर मानते हो
उस गुण करा, स्वय पालन करो । £
तीसरा ्रन्य-ब्रह्मचयं' है। शारीरिक श्वत आदि
प्राप्त करने के लिए जो ब्रह्मचयं पालन किया जाता है वह
द्रव्य-ब्रह्म च्य” है । इस द्रव्य-ब्रह्मचर्य से शारीरिक शक्ति
प्राप्त होती है । कहा भी है--
ब्रह्मचर्यं प्रतिष्ठायां बीयंलामः
--योगसुत्र
द्रव्य-ब्रह्माचय के पालन सेः वीयं की रक्षा होती है।
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