जवाहर-ज्योति | Jawahar-Jyoti

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Jawahar-Jyoti by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहाचर्य ] [ & हैं ससार मे हीरा-मोती पहनने वालों का आदर देखकर कितनेक लोग सच्चे हीरा-मोतियो के अभाव मे, आदर-सत्कार पाने के लिए नकली हीरा-मोती पहनते हँ । नकली चीरा- मोती पहनने का তলক্ষা उद्देश्य सिर्फ यही होता है कि नखरे करके किसी प्रकार लोगो को घोखा दिया जाये ।, इसी प्रकार ससार मे बरह्मचारी का आदर-सन्मान होते देखकर उसी प्रकार का आदर-सन्मान पाने की लालसा से कु लोग नाममात्र के ब्रह्मचारी बन बैठते हैं- वे ब्रह्मचय का पालन नही करते। ऐसे ब्रह्मचर्य को शास्त्रकार 'नाम-ब्रह्मचर्य ” कहते है। यह नाम- ब्रह्मचयं की वात हुई । ৮ जो स्वय ब्रह्मचये का पालन नही कर-सकता किन्तु ब्रह्मचयं या ब्रह्मचारी कौ मृति बनाकर ओर उससे काम चल जायेगा--एेसा सोचकर, सूति की स्थापना करके उसे मानता है वहु स्थापना-ब्रह्मचारी ह । उसके इस ब्रह्मचर्य को स्थापना-ब्रह्मचर्य कहते है । इस स्थापना-ब्रह्मचर्य से भी कोई विशेष लाभ नहीं होता । लाभ तो तभी हो सकता है। जब कि जिस गुण के कारण तुम उसकी मूर्ति बनाकर मानते हो उस गुण करा, स्वय पालन करो । £ तीसरा ्रन्य-ब्रह्मचयं' है। शारीरिक श्वत आदि प्राप्त करने के लिए जो ब्रह्मचयं पालन किया जाता है वह द्रव्य-ब्रह्म च्य” है । इस द्रव्य-ब्रह्मचर्य से शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है । कहा भी है-- ब्रह्मचर्यं प्रतिष्ठायां बीयंलामः --योगसुत्र द्रव्य-ब्रह्माचय के पालन सेः वीयं की रक्षा होती है।




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