प्राचीन राजस्थानी गीत | Pracheen Rajasthani Geet

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Pracheen Rajasthani Geet by श्री मोहनलाल व्यास शास्त्री - Shri Mohanlal Vyas Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन रातम्थानी गीत आअर्ग:-आशा फवि, कहता है कि सेरा मन उस माधव में ला लगा है, जिसे मघुसूदन, मुरारी, नारायण, शमिह, दामोदर और दाता कहते हैं. । (जिसे ) सत्यमामा और रमा का प्रेमी शिव एवं अह्याका स्थासी, सीता और रव्मिणी का पति, शोवल्लभ पुकारते हैं.। ( जिसे ) एथ्वी फो दाद़ों पर रखने चला, कर्य में शंख, चक्र और पद्म धारण करने बाला, शेप एवं जलशायी, जगन्नाथ-+ लंका घिजयी, नर्दों प्रहां को सुक्त कराने बाला, काली नाग का नायते वाला, रावण फे दसो मस्तक काटने वाला, श्रीपति और श्रीराम कहते हैं. । ( जिसे ) केशब, झृप्ण, कल्याण स्वतप, कसारि, ऋपालु, उद्धार कनी, वामन, विपु, विदल मनमाली कदते ह 1 ( जिसे ) श्याम, द्म, पीताम्बरधारी, सर्प को नथने बाते, अदूभुत बलशाली और हएशथ्वी तथः थआाकाश का आश्रय कद कर लोग पुफारते हैं. रचयिता--ईशरबरदास बारहट' | मभीत ४ শো बढ़ पाखे वेद न कीज़, कीबो जिम ग़मय कौजें। ब६ नामी प्से दीसे, रे लझ्गद किएद्दी न लीमे ॥१॥ १-+ ये ऐड्डिश शाक्षा के पररु हरि परम सक्त हो इक हैं। थे प्ले माजाई पीकददं परे गह रहे। हक रब पन्दः--*दृ्िमिए ( होशा-




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