हिन्द स्वराज्य | Hind Swarajya

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Hind Swarajya by काका कालेलकर - Kaka Kalelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ चाहिये । मसलन्‌, टेटृ तकरुवेको सीधा वनानेवाले यंत्रका में बहुत स्वागत कमा । लेकिन लुहारोंका तकुबे बनानेंका काम ही खतम हो जाय, यह मेरा उद्देश्य नहीं हो सकता। जब तकुवा टेढ़ा हो जाय तब हरएक कातनेवालेके पास तकुवा सीधा कर छेनेके लिए यंत्र हो, इतना ही में चाहता हूं। इसलिए छोमकी जगह हम प्रेमकों दें। तव फिर सब अच्छा ही अच्छा होगा। मुझे नहीं छगता कि ऊपरके संवादमें गांधीजीने जो कहा है, उसके बारेमें इन आलोचकोंमें से किसीका सिद्धान्त की दृष्टिसि विरोध हो। देहकी तरह यंत्र भी, अगर वह आत्माके विकासमें मदद करता हो तो, भौर जितनी हृद तक मदद करता हौ उतनी हद तक ही, उपयोगी है। पटिचमकी सम्यताके वारेमें भी ऐसा ही है। “परिचमकी सम्यता मनुप्यकी अतत्माकी महारात है ' -- इस कथनका विरोव करते हए मि° कोल लिखते हैं: में कहता हूं कि स्पेन और एविसीनियाके भयंकर संहार,' हमारे सिर पर हमेशा ल्टकनेवाल्न भय, सव तर्टकी रिद्धि-सिद्धि पैदा करनेकी शक्ति मौजूद होने पर भी करोड़ोंका दारिद्रथ, ये सब पद्चिमकी सम्बताके दूपणणा हैं, गंभीर ভু हैं। लेकिन वे कुदरती नहीं हैं, सम्यताकी जड़ नहीं हैं। . . - में यह नहीं कहता कि हम अपनी इस सम्यताको युधारेंगें; केकिन वह सुबर ही नहीं सकती, ऐसा में नहीं मानता। जो चीजें मानवकी आत्माके छिए जरूरी हैं, उनके साफ দুল कार पर उस सम्यताकी रचना हुईं है ऐसा में नहीं मानता |” बिछकुल सही वात है। और गरांवीजीने उस सम्यताके जो दूषण बताये वे कुदरती नहीं थे, वल्कि उस सम्यताकी प्रवृत्तियोंमें रहे हुए दृषण थे; और इस पृस्तकमे गांवीजीका मक्रसद भारतीय सन्यताकी प्रवृत्तियां पश्चिमकी सम्यत्ताकी प्रवृत्तियसि कितनी भिन्न हैं यही दिखानेका था। पश्चिमकी सम्बताकों सुवारना नामुमकिन नहीं है, मि० कोलकी इस वबातसे गांधीजी पूरी तरह सहमत होंगे; उनको यह भी मंजूर होमा कि पदिचमको परदिचमके ठेगका टी स्वराज्य चाहिये; वे आसानीसे यह भी स्वीकार १. उसूछ। २. कत्छ1 ३. खराबियां। ४. हमराय। हि. प्र. २




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