प्यार के बंधन | Pyar Ke Bandhan

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Pyar Ke Bandhan by सागर - Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সাজা परदा १६ है भाई, आपका क्ृपापर्ण पत्र मिला । आपके पत्रने मेरे मनमे जितने विचार उठाये और आपके प्रश्नने मेरे सामने जितनी कठिनाइयाँ उपस्थित की सम्भव है उनका आपको अनुमान न हो । मैं नही समझ पायी कि आपको वया उत्तर दूँ 1 उत्तरमे विरूम्बका भी यही कारण है। फिर भी आपके पतन मुम एक नया वल बौर नया साहस दिया हँ । मैने पूरी स्पष्टता और ईमानदारीके साथ थापके प्रज्नोका उत्तर देनेका निश्चय क्रिया ह । मापने मसे अपनी वहन स्वीकार किया, इससे मृञ्ञे जितना सुख मिला है उसकी मै कभी कल्पना भी नही कर सक्ती थी । मेरे केवर एक छोटा भाई ह, पाँच सालका। मुझे सचमुच एक ऐसे बडे भाईकी आवश्यकता थी जो भाईके स्नेहके साथ मेरा पथ-प्र दर्शन कर सके । मैंने आपको जो पत्र लिखा था वह परिवारके वाहर जानेवाला मेरा पहला हो पत्र था । आपक्नो वह पत्र लिखते समय मेरे मनमे आपके प्रति भाईका कोई भाव नहीं था। “भाई'का सम्बोवन घुननेमें मुझे झिसक हुई थी । वह मुझे अस्वाभाविक-सा जान पडा था, और पत्र भेजनेके वादतक यपना वह्‌ चुनाव मुझे खटकता रहा था। महागय या महोदय आदि नम्बोधन में चुन नहीं सकती थी, क्योकि उनमें बहुत अधिक परायापन लगता था और उचित बादरका अभाव भी । फिर भी मैने कोई उपयुक्त सम्बोधन न पाकर आपको भाई लिखा था। मथुरामे आपने जितनी वार मुझे देखा है, उससे कही अधिक वार मैंने आपको देखा है। आपके सामने पटनेपर मैने स्व चाहा है कि आप मयने कुछ कहें और में आपसे बोल सकू । दो-एक बार अपनी ओरसे हो कुछ कहनेका साहस करके में गले तक कुछ जब्द छा पायी थी, लेकिन बोल नहीं मकी । इसका कारण वहत-कुछ हमारे घरोकी परदा-प्रथा और सकोच या) मसो भावनाजोकी उलझन भी इसका कारण हो सकती है। फिर भी मन कभो नी नापको भाई मानने या कहनेकी इच्छा नही को। आपं अव




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