निबन्ध - चयनिका | Nibandh - Chayanika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ५ |
६ कि शाम নব্য লন চলা বে জা জা प्रान्त नर गहत
(২) জিন নয়া ছাল হন কজাল। का सन्नि्ए मन से
ল্যান সায় ভাটি ই (३) ये आए रु आर उपरण केवल एक
प्रजार की म उत्द का काम হল
मन व्लने या নুনন वाले के मन
भाषा को उस तक पह था कर उसे प्र
उसने वाले का मन अपने मन के रुद्दश कर ठेता है | प्रतएव यह्
पिद्धात निफला कि ललित ऊत वदं वसतु या वर् कारीगरी ह जिसका
द्रव रद्रि की मव्वस्यता द्राय मनकोटोताहैश्रार जो उन वा-
घ्याथा से भिन र जिनका प्रयतत नान टद्रिवों प्राप्त करती ₹है। इसभिये
हम कर सकते है कि ललित कलाएँं मानसिक दृष्टि मे सादप का
प्रयक्षाक्रणु ছ।
इस लक्षण को समभने के लिये यह आवश्यक हे कि हम प्रत्येक
ललित बला के सबंध भे नीचे लिखी तीन बातो पर विचार कर--(१)
उनका मूतं आधार, (२) वह साधन जिसके द्वारा यह आधार गोचर
=
होहा है छोर (३) मानसिक दृष्टि मे नित्य पदार्थ का जो प्रत्यक्षीकरण
होता हे वह कसा ओर कितना हैं।
पारत হুত্বঃং--
वास्तु-क्ला ने मूर्ते आधार निक्ृष्ट होता है न्र्थात् इंट, पत्थर, लोहा,
कडी आदि जिनसे इमारते बनाई जाती हैँ, ये सब पदाथ मूत हैं.।
अतएव इनका प्रभाव आखा पर दंसा ही पडता हं ञंसा कि किषी दूरे
मूत पदार्थ का पड सकता है। प्रकाश. छाया, रण, ,प्राकृतिक स्थिति
आदि साधन कला के सभी उत्यादनों को उपलब्ध रहते हैं। वे उनका
उपयोग सुगमता से करके ग्रोखो के द्वारा दर्शक के मन पर अपनी कृति
की छाप डाल सकते हैं। इसके दो कारण हँ--एक तो उन्हे जीवित
पठाथों की गति आदि प्रदशित करने की आवश्यकता नहीं होती, दूसरे
उनकी छूति में त्प-रग, आकार आदि के वे ही गुण बतंमान रहते हैं
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