श्री जवाहरलाल जी | Shree Jawaharlal Ji

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Shree Jawaharlal Ji by सुमतिलाल बांठिया - Sumatilal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चतुर थी। अपने पति के प्रति वह सदा अनुरक्तं रहा करती थी तथा तन, मन से सेवा किया करती थी । इस प्रकार अपने पत्ति की प्रसन्नता मे प्रसन्न रहने वाली धारिणी रानी आनन्द-पूर्वक दिन व्यतीत करती थी। कई लोग कहा करते हैं कि साधुओं को स्त्री-सौन्दर्य और सांसारिक बातों के वर्णन की क्या आवश्यकता? इसके उत्तर में इतना ही कहना पर्याप्त है कि वास्तविक बात को बिना बतलाये काम नहीं चलता । यदि वास्तविक बात स्त्री-सौन्दर्य या सांसारिक बातों का वर्णन साधुओं के लिए वर्ज्य होता तो गणधर लोग हस्तिशिखर नगर, अदीनशत्रु राजा और धारिणी आदि के प्रशंसात्मक वर्णन में बड़े-बड़े पाठ न देते, अपितु उनका अस्तित्व बतला देना ही पर्याप्त समझते। लेकिन गणधरों ने सब बातों का -फिर वे बातें चाहें सांसारिक विषय की हों, यां स्त्री-सौन्दर्य विषयक हों उनका अच्छी तरह वर्णन किया है। केवल धारिणी रानी के वर्णन में ही कितना और किस भावार्थ का पाठ दिया है, यह देख लेने मात्र से मालूम हो जायेगा कि साधुओं के लिए वास्तविक वर्णन वर्ज्य नहीं हे] धारिणी रानी के विषय मे शास्त्रपाठ हे- तस्स णं अदीण सत्तुस्स रण्णो धारिणीणामं देवी सुकुमाल पाणिपाया, अहीण पडिपुण्ण पंचिंदिय सरीरा. लक्खणपंजण गुणोववेया, माणुम्माणवंपमाण पडि- पुण्ण सुजाय सव्वंग सुन्दरंगी, ससि सोमाकार कांत पियदंसणा. सुरुवा, कारयल- परिमिय पस्थ तिवलिय मच्डा, कुण्डलुल्लिय हिय गंडलेहा, कोमुङ्य रयणि करविमल- पडिपुण्ण सोम वयणा. सिंगारागार चारुवेसा, संगय गय हसिय भणिय विहिय দি অ- ललिय संलावणि उण जुत्तोव-यार कुलसला पासादीया 1. पच्चुखमवमाणी विहरड्‌ | 58 টা চি अदीनशत्रु राजा की 7 नाम रानी के हाथ-पैर ডিসি ৮ | জল রর लक्षणों से सम्पन्न और परिपूर्ण, पांचों রি টা के शरीर स्वस्तिक चक्‌ आदि लक्षण ओर तिल 1 । उसके शरीर के सब अंग मान-उन्मान ओर प्रमाण के अनुसार ही वने थे। उसका चन्द्रमा के समान सौम्य ओर मनोहर अंग वाला रूप देखने वालो को बड़ा 1 लगता में आ जाती थी। गालों ९ টি उसकी त्रिवलियुक्त कमर मुट्ठी লা रव पत्ररचना, कानों कुण्डल से चमकदार हो गई ए शरम मुख कातिक मं उदय होने वाले चन्द्रमा की चन्द्रिका जैसा था। है उसका एद खुंगार २ का ১২২৭ মা, शुमार रस का स्थान सा हो गया था। उसका ই গান পি সস িতস न का चलना, हसना,




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