भारतभ्रमण (भाग - २) | Bharat Bhraman Part-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३ बलरामपुर-देंवीपाटन-१८९२. (२७७ )
जोने गोंडाके राजाकों खदेड़ दिया और उसकी मिलाकियत जब्त करके बलरामपुरके महाराज
और शाहगंजके सरसानसिहको बखशिश देदी।
बलरामपुर ।
गोडा कसबेसे रूगभग २८ मील उत्तर गोडा जिलेमें रापती नदीसे रगभग २ मीरू
दाक्षिण सुबावन नर्दाके उत्तर किनारे पर बलरामपुर एक छोटा कसबा है। गोंडासे बलरामपुर
तक सिकड़म चलता है। अवधके ताल्छुकेदारेमे चलछरामपुरके राजा सबसे घनी हैं ।
सन् १८९१ की मनुष्यगणनाके समय बलरामपुरमे १४८४९ मनुष्ये । अर्थात्
९८६९ हिन्दू, ४९४९ मुसलमान और ३१ छस्तान ।
महाराजका मदहर वडे कोट्से घरा हुआ है, जिसके एक वगर पर रहनेके मकान
और आफिस और दूसरे बगल पर अस्तवं ओर बाहरी के मकान दे । बङरामपुसमे छोटे
बड़े ४० देवमन्द्रि, एक नवा विजलेश्वरी देवी का पत्थरका मन्दिर, १९ मसजिदें, १ बड़ा
स्कूल और २ अस्पताल ह। बाजारमें चारो ओरके देशसे चावलका व्यापार होता हैं और
कपड़ा, कंबल छुरी इत्यादि वस्तु बनती है।
इतिहास-१४ वी शताव्दीके मध्य से जनवार राजपूतोंने उस देशको जीत लिया}
जनवार प्रधानोमसे एकसे वलरामदासथे, जिन्होंने बलरासपुरको नियत किया । सन्१७७७.
ई० से राजा नवलासिह उस मिलाकेयत का सालिक हुआ । यद्यपि राजाकी सनासे वह कई
बार परास्त हुए, पर उन्होने कभी उसकी हुकूमत स्वीकार नही की । राजा नवरसिंह्
के पोते सर दिवरजर्यासहने सन् १८३६ ई० में मिलकियत का कब्जा हासिल कया ।
सन् १८५७ ई० के बलवबे मे रुहेंलखण्डके सब प्रधानोंमेसे वह अकेलेदी अंगरेजी सरकारकी
ओर रहे, जिससे उनकी बहराइच जिलेमे बड़ी मिलछाफेयत, ओर तुरूसपुर परगना और
सहाराज ओर के सी. एस. आद की पदवी भिटी ।
अ ५
देवीपाटन ।
वलरामपुरस १४ मीरू उत्तर गोंडा जिलेके देवीपाटन बस्तीसें पटेश्वरी देवीका
प्रसिद्ध मन्द्र है, जहां चैत्री नवराच्रिमे देवीके दुशन पूजनका बड़ा मेछा होता है ओर छंग-
भग १० दिन रहता इ । मेलेमें लछग़्भग १००००० मनुष्य और विशेष पहाड़ी लोग और पहाड़ी '
असवाब आते हैं | सोदागरीकी प्रधान वस्तु पहाड़ी टांगन, कपड़ा, ढकड़ी, चटाई, घी, लोहा;
दारचीनी इत्यादि हैं ।
ऐसा प्रसिद्ध है कि जब द्रोणाचार्यने कुंतीके पुत्र कर्णको अरह्माद्न चछानेकी विद्या सिख-
लानी अखीकार की, तब कणने महेन्द्र पर्वेत पर जाकर परशुरामजीकी सेवा कर उनसे वद्मा
चलानेकी विद्या साखी और राजा दुर्योधनसे मिछुकर कुछ राज्य पाया । उसके उपरान्त जरा-
सेघने कणेको माछिनी नगरी दी, जिस पर उसने दुर्योधनके आधीन राज्य किया } इसी स्थान
पर सालिनी नगरी थी। एक समय पटेश्वर्सके वर्तमान मन्दिरके स्थान पर पुराने किलेकी
तवाहेयां थी । सन् ई० को दूसरी शताव्दीके सध्य भागमे बौद्ध छोगोकी घटतीके समय
विक्रमादित्य नासक राजा अयोध्याम् आया ओर पुराने किकेके स्थान पर उसने एक मन्दिर
चनवाया । १४ वीं शताब्दीके अंतमे वा १५ वके आरम्भे रतननाथने उख जीणं मन्दिरके
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