श्रीचरित्र और श्रीमद्भगवन [भाग १] | Shricharitra Aur Shrimadbhagwan [Part 1]
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
663
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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परीक्षित-शाप] कृष्णात्पर किमपि तलवमहं न जाने १६
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तुम्हरे शुण शुण साया के लिये, हैँ काल-रूप इतना सुनकर ।
सै किंचित सात्र आपकी प्रछ्ु, लीला लिखने को हुआ तत्पर ॥
हैँ में अल्यज्ञ सन्द बुद्धी) इसलिये सहाय कीजियेगा ।
दे सव-शक्ति-संपद्च ईश, लिखने की शक्ति दीजियेगा ॥
फिर यह भी वरदो कलिरूपी, निधिसेंजो नर হজ্জ खावे।
उसको यह् ग्रन्थ स्थं सम बन) सतमागे प्रद्शक दहो जाचे॥
कह तथास्तु श्रीकृष्ण कट, होगये अन््तरध्यान ।
खोली आँख सखुनीश ने, कहि जय क़पानिधान ॥
फिर निशि दिन अति प्रयत्ञ करके, सब शोक सोह हरने वाली ।
अरू यदुराई के चरणों में, सक्ती पेदा करने वाली॥
(श्रीमद्भागवत संहिताः रची) रचकर दीन्ी शुक ज्ञानी को ।
अस रहस्य समेत पदाय दई, निशैण स्वकूप के ध्यानी को ॥
इसको पढ़कर द्वेपायन खत, बनगये भक्त वनवारी के ।
दिनि रात ध्यान सं रहन लगे, कंसारी, -गिरवरधारी के॥
इस तरह बहुत হিল वीत गये, एक समय ये गंगा तट आये ।
यहाँ पर इक अद्भत दृष्य लखा, जिससे मन में अति चकराये ॥
च्या देखा एक मण्डप नीचे, कंठे दँ अगणिति ऋषि-राह ।
अरु मध्य मं जिनके अभिमन्यू) के सुत देते हैँ दिखलाह॥
उप का हू वेब स्थागियों सम, कुछ एँछ रहे दँ सुनियों से।
होरहा हे -शंका समाधान, अध्यात्म तत्व के गनियों से॥
अताओं भूपष परिज्षित क्यों, साधूवचन आ बेठे यहां पर ।
ये सारी गाथा तुमझो हम, कहते हें सुनो ध्यान देकर ॥
९. भ
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