श्रीचरित्र और श्रीमद्भगवन [भाग १] | Shricharitra Aur Shrimadbhagwan [Part 1]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~~ -.------ ~~. - -----.~-~--~---~-~~--------~-~---------~------------~---~--------~---- ~~~ - ~~ परीक्षित-शाप] कृष्णात्पर किमपि तलवमहं न जाने १६ ক -~-~~~~-~---~~~---~---~----~+ --~--~- ~~ -~-~--~-~~----~-----^- तुम्हरे शुण शुण साया के लिये, हैँ काल-रूप इतना सुनकर । सै किंचित सात्र आपकी प्रछ्ु, लीला लिखने को हुआ तत्पर ॥ हैँ में अल्यज्ञ सन्‍द बुद्धी) इसलिये सहाय कीजियेगा । दे सव-शक्ति-संपद्च ईश, लिखने की शक्ति दीजियेगा ॥ फिर यह भी वरदो कलिरूपी, निधिसेंजो नर হজ্জ खावे। उसको यह्‌ ग्रन्थ स्थं सम बन) सतमागे प्रद्शक दहो जाचे॥ कह तथास्तु श्रीकृष्ण कट, होगये अन्‍्तरध्यान । खोली आँख सखुनीश ने, कहि जय क़पानिधान ॥ फिर निशि दिन अति प्रयत्ञ करके, सब शोक सोह हरने वाली । अरू यदुराई के चरणों में, सक्ती पेदा करने वाली॥ (श्रीमद्भागवत संहिताः रची) रचकर दीन्ी शुक ज्ञानी को । अस रहस्य समेत पदाय दई, निशैण स्वकूप के ध्यानी को ॥ इसको पढ़कर द्वेपायन खत, बनगये भक्त वनवारी के । दिनि रात ध्यान सं रहन लगे, कंसारी, -गिरवरधारी के॥ इस तरह बहुत হিল वीत गये, एक समय ये गंगा तट आये । यहाँ पर इक अद्भत दृष्य लखा, जिससे मन में अति चकराये ॥ च्या देखा एक मण्डप नीचे, कंठे दँ अगणिति ऋषि-राह । अरु मध्य मं जिनके अभिमन्यू) के सुत देते हैँ दिखलाह॥ उप का हू वेब स्थागियों सम, कुछ एँछ रहे दँ सुनियों से। होरहा हे -शंका समाधान, अध्यात्म तत्व के गनियों से॥ अताओं भूपष परिज्षित क्‍यों, साधूवचन आ बेठे यहां पर । ये सारी गाथा तुमझो हम, कहते हें सुनो ध्यान देकर ॥ ९. भ क




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