बापु रेड्डी - गद्य काव्य | Bhapureddy Grandhkavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आँखे खोल देखने तक गोचर हुआ एक करुणामय कोदंड-किरीट नहीं सो रामचन्द्र ही करोड़ों आँसू भेदित सोमराज- आशा किरण मेरे आँखों में स्थापित इस लोक से अंधेरों को दूसरी बार दूर करके मुझमें नव जीवन के वीणानाद पल्‍लवित्त कर मुञ्चे इस लोक पर फिर से विश्वास दिकराया- गग 2० अभयदान स्वप्न, सुगंध सुशोभित कश्मीर देश है क्‍या ! एसी रमणी के अधघरों पर प्रकाशमान दरहास है क्या तेरे नाभ सुनत्ते ही मुझमें निर्मल तुषार-कोहरा बरसती है तेरे रूप स्मरण करत्ते ही मुझ में निर्घोष कुसूमहार प्रज्वलित होती दै- दानवता হাজলী को तुम हिम्मत न हारना कह कर संकुचित द्वेषाध्नियों को तुम समिद न हो जाना कहे मनृष्य - लोक पक्ष से भारत मात्ता के समक्ष में बोल रहा हु-बार - बार- ६9




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