भारत की वीरंगानायें | Bharat Ki Virangnaye

Bharat Ke Virangnaye by दीना नाथ व्यास - Deena Nath Vyash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“पर बल्कि ईमानदारी पर भी सन्देह करने लगे हैं। में बुद्धिमानी को इतना महत्व नहीं देता जितना ईमानदारी को देता हूँ। मेरे लिये इमानदारी ही सबसे बड़ा खजाना है। “उनके लिये वास्तव में यह बडा ही कठिन काय॑ है कि उन्हें एक ऐसे वायसराय का विरोध करना पड़ेगा जो उनका मित्र रहा है।इस समय शज्ड्रयूज़ की आत्मा मुझे प्रेरणा दे रही है। जितने अग्रेजों को में जानता हूँ, उनमे एन्ड्रयूज़ सबसे महान आत्मा थे। एन्द्रयूज़ के साथ मेरा इतनी गहरी मैनत्नी थी जितनी किसी भारतीय से भी नही रही | हमारे बीच कोई गुप्त भेद, कोई गुप्त वात नहीं थी | जो कुछ उनके हृदय में होता था वे -निस्संकोच मुभसे कह दिया करते थे | यह सच है कि वे गुरुदेव के भी मित्र ये परन्तु वे गुरुदेव--रवीन्द्र नाथ टैगोर की महानता से सहम जाते थे |”? “इस पृष्ठ भूमि के साथ मैं दुनिया के सामने घोषित करना चाहता हैँ कि आज चाहे पाश्वात्य देशों के, कुछ मित्रों का आदर भाव और विश्वास मुझ पर से उठ गया हो, चाहे मैंने उनका प्रेम व मैत्री खो भी दी हो. मे अपने अन्तःकरण की आवाज को दवा नहीं सकता। आप उसे हृदय की वासी कहें अथवा कुछ भी कहें परन्तु वह ङु हैं जरूर, और चाहे मैं शब्दों २ “उसकी व्याख्या न कर सकर, पर मैंने उसे समझा जरूर है।यह आवाज -मुझे कह रही है कि मुझे अकेले दुनिया से लड़ना पड़ेगा | वह मुझे यह भी बता रही है कि तुम तब तक सुरक्षित हो जब तक कि तुम दुनिया का आँखों से आँखे मिलाये हुए हो, चाहे वह आँखें खूनी ही क्‍यों न हो । यही चीज़ मेरे हृदय में है। में जानता हूँ कि मुझे अपनी पत्नी, मित्रों ओर सबके छोड़ना पड़ेगा । मै अपनी जिन्दगी का पूरा दौर चिताना चाहता हूं । प्छ में नही सनभता कि इतने दिन जिन्दा भी रहूँगा। जब में नहीं रहूगा भारत आजाद होगा और भारत ही नहीं सारी दुनिया आजाद होगी। में नहीं समझता कि अमेरिका आजाद है या इग्लेड आजाद है।वे अपने । विचार के अनुसार भले ही आजाद हो पर मेरी राय में नहीं। मे जानता दकि आजादी क्‍या चीज़ है ? अग्रेज शिक्षकों नेही झफे आजादी के अर्थ নি




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