दस्साओं का पूजाधिकार | Dassaaoka Pujaadhikar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३ ]
जनद्रान) जाप्य, शाञ्च श्रवण द्वारा हौ विशेष परयोपाजंन कर
सकते हैं न कि अष्ट द्रव्य की पजा से ! पण्य पाप का बंध
भावानसार ही दोता ह !
निराकरण---श्स याक्तद्वारा आप दस्साओं को पजाधिकारी
न मानकर भाव पवक जन दशन आदि की सलाह दे रह् ह |
उसमे भौ भाव पूजाक्रन तक् की उदारता आप नहीं वता सके ह |
एक तो बात यह है कि दस्साओं को द्रव्य पजा अनांधकारी मानना
ही अनचित है । और यदि आपके कथनानुसार मान भी लिया
जाय तो आशय यह हू कि आप भाव पूजा की अपेत्ता द्रव्य पजा
प विशेष मत्व कंसेदे रहे हैं ? कारण कि ) जन्दे आम भाव-
पूजा करन का अनुमात देत हैं उन्हं द्रत्यपूजा करन करा नषेध
कर रह हैं। आर जब आप भावानसार ही परण्य বান छा अंधे
सान् गह है. तब द्रव्य पूजा रा दमस्साओं का কমা राकते हूँ ? आप
के भावपूजा के सद्घान्तसं ही शब्द का प्रयोग होनेस ता स्प
मद्ध है क द्रव्य पूजा का यदि दम्सा भाई करं वो => पापबंध
कदाप नहां हो सकता | कारण कि पाप पण्य का कारण भाव हीं
है । आश्थय है के आए आन अत सिद्धान्त নাল के कारण एक
जेगह भावत्रपुजा का বান दे रह हें दसरी जगह द्रव्यपृजा क
भावपूजा से बहुकर सान रह है ।
६) याक्च---गुणां की समानता में ह। आपधकार की समा-
পলা তা सकता है ¦ जसे एक घाड़ा एक हज़ार सपय स बकता है
ना दूसरा पाल रूपय से भी नहां थकता चाड़ों के गुणा म नस्त
का शु टाना सवाष्व गुप ह | उसी प्रकार मनप्यां में सजातायता
ললাম্বি गुण ই । जा अधिकार सज्ञाति को प्राप्त हैं बह जाति
पातल का कद्ाप सही हा सकत |
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