एक समन्दर प्यासा सा | Ek Samandar Pyasa Sa

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Ek Samandar Pyasa Sa by रामप्रकाश गोयल -Ramprakash Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एकं समन्दर प्यासा-सा जीवन के तल्खु ओर मीठे एहसासों से साक्षात्‌ करादी गृजृले | गजले हो या कविताएँ- कवि की लेखनी से लिखी गई तमाम रचनाएँ अलग-अलग स्वभाव ओर स्तर को जीने वाले रिश्तो की तरह होती है| कुछ रिश्ते थोड़ी दूर चलकर छूट जाते है, कुछ से हमारा ही मोह-भग हो जाता है और कुछ जीवन भर हमारा साथ निभाते है। जो रचना अपनी सवेदना और कहन दोनों मे ही निष्कलुष आत्मीयता से भरी होगी और अपनी सम्प्रेषणीयता से अपनीत होकर एक लम्बे समय तक हमारे मन और मस्तिष्क को सवेदित और प्रचेतित करेगी, वह उसी रिश्ते की तरह होगी, जो जीवन भर हमारा साथ निभाते है| कुछ रिश्ते पुराने होकर भी जीवन मे नया रस घोलते है और कुछ नए होकर भी हमे रुक्ष और उबाऊ बना देते है। यो सब पुराने सही हो और सब नए गलत ऐसा भी नहीं है। पुराना तब तक सही है जब तक कि वह रूढ़ि न बन जाये और नया भी तब तक सही है, जब तक वह अपनी पुरानी जड़ो (जड़ताओ नही) से पहचान रखे | आज कविता ही नही, साहित्य की हर विधा मे नए-पुराने का सवाल जब-तब उभरता ही रहता है। कविता के क्षेत्र मे इन दिनो यह सवाल कुछ ज़्यादा ही तेजी पकड़ रहा है। नवगीत को छोड़कर लोग फिल्‍मी गीत की ओर लौट रहे है, कुछ लोग पारम्परिक गीत को ही असली गीत मानने पर अड़े हुए है। गूजूल के क्षेत्र मे भीजदीद गृजलो के साथ रिवायती गृजृलो का शोर अभी थमा नही हे ¡ केसिदटो मे आज भी ज्यादातर रिवायती गजलें धड्ल्ले से भरी जा री हे। इन रिवायती गजृलो मेँ सब बकवास हो, ऐसा भी नहीं है। दर असल कोई भी सच्चा कवि परम्परा के नाम पर किसी रूढि को स्वीकार नही करता और न ही आधुनिकता के नाम पर चालू, फैशन को अपने रचना-कर्म से जोड़ता है। श्री राम प्रकाश गोयल बेशक परम्परावादी लहजे के गजल-गो कवि हैं लेकिन आधुनिकता से बिल्कुल मुँह फेरे हो ऐसा भी नही है एक प्यासा सा सग्रह की गृजर्लो कतात शेर मीत अतुकाँत




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