आर्पग्रन्थावलि | Aarpgranthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूमिका ॥ ष्ट भी २० हैं। यह मूल है । हां खत्रार्य टिप्पनी में दिया हुआ है । तीसरा पुस्तक १९९० ईं० में कलिकाता में छप्ा था | इस पर हारेहर के घुत्त परमहंसाचार्य माधव पौरिवाजक का राचित विचरण है। सच इसके भी २२हें | इन तीनों के आधार पर में इस ग्रन्थ को सम्पादन करता हूं । यह छोटे ९ खूच ओर संख्या में २२, तथापि इन में साखझूय का सूल उपदेश पूरा है ॥ सांख्य के दूसरे प्राचीन ग्रन्थ पञ्नशिखाचार्य के सत्र हैं। পিসিতে क +, नः सांख्य के दूसरे টু यद अन्थ सुझे अभीतक नहीं मिला, न किसी प्रायोन अन्य का है से इसकी विमानच का ही पता छगा है। नदैः पर जो सूच इसके योगभाष्ये उद्धत किये हुए हैं, चह बंडे सनोहर और सविस्तर है ॥ जब तक वह सूत्र पूरे सिर्के ( वा कदातचिव हमारे दोभीग्य से अब न ही मि्छे ) तब तक मैंने उन उद्धत सारे खत्तों को इकठ्ा करके उचित क्रम में रखकर छाप देना उचित समझा हैं, जिससे हमारे पाठकों को उतना रसतो मिरु जार । तीसरा प्राचीन पुस्तक वार्षगण्याचय भणीच षृष्टितन्त दे । यह भी अभी तक बड़ी ইত से भी नहीं मिखा पर सांख्यसप्तति इसी पष्ठटितन्‍त्र के आधार पर बनी है । उस के सावेस्तर विषय को इसमें संक्षिप्त किया गया है, ओर उसकी आडख्यायिकायें इसमें छोड़ दीगई हैं, तथापि इस ग्रन्थ मे सिद्धान्ते का सविस्तर वशन हे, इसीर्य पञदिखाचाथके दनो के अनन्तर सांख्यसप्तति का सम्पादन भी उचित समझा है। इससे सांख्य के सारे. सिद्धान्तों का सविस्तर वर्णन दोजाएगा । अतएव तप्त्व समास और पश्चादाखाचाय्य के सूत्रों के साथ सांख्य सप्तति को अवश्य पर्दे} - #




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