महाभारत | Mahabharat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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জ্যাম] ॐ भाषाञुवाद् सष्टित # ( १९) |
|
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এরা
# ০ বি ५
युधिष्ठिर उवाच ॥ कर्माएयुक्तानि युपमा भिर्यानि यानि करिष्यथ |
मम्त घापि यधाचुद्धिदचिता विविनिश्चयात्् ॥ १ ॥ पुरोद्दितोष्यम-
स्माकमस्िद्रोघाणि रक्षतु । खूदपोरोगवे: साथे पदस्य निवेशने ॥२॥
<| एन्द्रसेनसुलाश्मे रथानादाय फेचलान् । यान्तु द्वारावतों शीघ्र
4 मिति मे घतते मतिः ॥२॥ माश्च नारयो द्रौपच।: सर्बाश्च परिचास्किः
(| पाश्वालानेघ गच्छन्तु ख्रपौरोगवेः लद ॥ ४ ॥ सैरपि च वक्तम्धं
( न प्राक्ठायन्त पाठ्डवाः । गतीः द्यश्मानपाष्टाय सर्चे द्वेतव्ादिति ५
शएस्प॑यन उवाच । पव तेऽन्योऽन्यमामन्छय कर्मारयुक्त्वा प्रथस्
पय् । धोम्यमामत्रपामाः स च तान्मंत्रमव्रवीत् ॥ ६ ॥ धौम्य
¦ उपाच ] पिदितं पाण्डवाः सवं ब्राह्मणेषु खदत्छु च । याने प्रहरणौ |
4 चेच तथैवाधिषु मारत ॥ ७ ॥ उवय! रक्ता विधातव्या कृ्णायाःफारु्मु
नेम थे। विद्तिंचो यथा सवबे लोकबृत्तमिदं तव ॥ ८॥ बिदिते णापि (
युधिष्ठिर कते ই कि-दैषफे बुरे परिणाम फे कारण जौ २ कायं |
হন ই वह २ फायं तुमने मुभे फ छनोप रौर मैने मौ धपनी बुद्धि ४
फ अचुलार भपना कर्तव्य कद छुनाया ॥ १॥ ञझब अपने पुरोद्धित £
धीम्पको सारथी ओर रिसालदारों प्ले साथ राजा दुपद्के घर जञामे £
दो, लिससे कि--घे तहां जाकर হুমা अप्निद्योत्रफी रक्षा फरे ॥२॥ £
यह् इन्द्रसेन तथा अन्य पुरुष इस खाली रथफो হী लेकर श्रय द्वार |
फांको जायें, यद्द मेरो विचार है ॥३॥ और ইজির্ব घथां द्रौपदाफी (
टएसमियें सब सारथी और रिखालों के साथ पांचालकी ओर छी ।
जाये ॥७1 शोर दनस्ोसे कोई मारे सम्वंधमे वूफी तो उन सर्चोको
उत्तर देना चाद्टिये कि-पांडव दम खवौको छोड़ दैतवनमेसे नजाने
का चलेगप इसफी दमफो ऊद खवर नदीं टै ॥ ५॥ वैशंपायन फते ॥
हूँ कि--इस प्रकार उन्दोंने परस्पर एक दूसरेके फरनेफे कार्यों का |
| निश्चय करल्िया तद्नन््तर इस विपयमं उन्होने अपने पुरो।एत धौम्ध |
1 का विधार चूक तव धोस्यने झपनां विचार जताते हुए इस प्रकार |
{ फद्दा।द्षा धोम्यने कदा दे भारत ! ब्राह्मणादिक्त स्नेद्दी पालफी रत्यादि ¢
घाम हयियार तथां भर्िके संबन्ध मे जैसी व्यवस्था फरो दै वष |
सब आपने णाखाक्त रीतिसे की दै॥ ७ ॥ परन्तु श्रापको तथा धरञंस
` फो दल द्रोपदीकी सक्ता सावधानीत्ते करनी दोगी, तुम सथ लोकि |
, ध्यवद्दारोकी जान्तेदोतो भी स्नेदिर्योको प्रीतिपृवंक स्नेदियौ से |
लौकिक व्यप्र फी वातं करनी चाद्ये चयोकि--ल्ो किफ व्यवद्दार
| से ही धमं प्रथं शरोर कामकी रक्त दोती है अतः मैं भी घुमसे फदतो
ह तुम मेरे फहनेके प्रयोजदकी ओर ध्यान दो । दे कुरुवंशो राजपु
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