महाभारत | Mahabharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4२.१८ ७. 278५,4-25/0.0 ४2५ 4 4द13 ८.८७ 8 ८८5 4 «८८७ 4 ८०५ ६ >>. 2:70. 4:470. 4.2: / 070 ६ 20, 4৫৯৩০ / জ্যাম] ॐ भाषाञुवाद्‌ सष्टित # ( १९) | | ॥ । এরা # ০ বি ५ युधिष्ठिर उवाच ॥ कर्माएयुक्तानि युपमा भिर्यानि यानि करिष्यथ | मम्त घापि यधाचुद्धिदचिता विविनिश्चयात््‌ ॥ १ ॥ पुरोद्दितोष्यम- स्माकमस्िद्रोघाणि रक्षतु । खूदपोरोगवे: साथे पदस्य निवेशने ॥२॥ <| एन्द्रसेनसुलाश्मे रथानादाय फेचलान्‌ । यान्तु द्वारावतों शीघ्र 4 मिति मे घतते मतिः ॥२॥ माश्च नारयो द्रौपच।: सर्बाश्च परिचास्किः (| पाश्वालानेघ गच्छन्तु ख्रपौरोगवेः लद ॥ ४ ॥ सैरपि च वक्तम्धं ( न प्राक्ठायन्त पाठ्डवाः । गतीः द्यश्मानपाष्टाय सर्चे द्वेतव्ादिति ५ शएस्प॑यन उवाच । पव तेऽन्योऽन्यमामन्छय कर्मारयुक्त्वा प्रथस्‌ पय्‌ । धोम्यमामत्रपामाः स च तान्मंत्रमव्रवीत्‌ ॥ ६ ॥ धौम्य ¦ उपाच ] पिदितं पाण्डवाः सवं ब्राह्मणेषु खदत्छु च । याने प्रहरणौ | 4 चेच तथैवाधिषु मारत ॥ ७ ॥ उवय! रक्ता विधातव्या कृ्णायाःफारु्मु नेम थे। विद्तिंचो यथा सवबे लोकबृत्तमिदं तव ॥ ८॥ बिदिते णापि ( युधिष्ठिर कते ই कि-दैषफे बुरे परिणाम फे कारण जौ २ कायं | হন ই वह २ फायं तुमने मुभे फ छनोप रौर मैने मौ धपनी बुद्धि ४ फ अचुलार भपना कर्तव्य कद छुनाया ॥ १॥ ञझब अपने पुरोद्धित £ धीम्पको सारथी ओर रिसालदारों प्ले साथ राजा दुपद्के घर जञामे £ दो, लिससे कि--घे तहां जाकर হুমা अप्निद्योत्रफी रक्षा फरे ॥२॥ £ यह्‌ इन्द्रसेन तथा अन्य पुरुष इस खाली रथफो হী लेकर श्रय द्वार | फांको जायें, यद्द मेरो विचार है ॥३॥ और ইজির্ব घथां द्रौपदाफी ( टएसमियें सब सारथी और रिखालों के साथ पांचालकी ओर छी । जाये ॥७1 शोर दनस्ोसे कोई मारे सम्वंधमे वूफी तो उन सर्चोको उत्तर देना चाद्टिये कि-पांडव दम खवौको छोड़ दैतवनमेसे नजाने का चलेगप इसफी दमफो ऊद खवर नदीं टै ॥ ५॥ वैशंपायन फते ॥ हूँ कि--इस प्रकार उन्दोंने परस्पर एक दूसरेके फरनेफे कार्यों का | | निश्चय करल्िया तद्नन्‍्तर इस विपयमं उन्होने अपने पुरो।एत धौम्ध | 1 का विधार चूक तव धोस्यने झपनां विचार जताते हुए इस प्रकार | { फद्दा।द्षा धोम्यने कदा दे भारत ! ब्राह्मणादिक्त स्नेद्दी पालफी रत्यादि ¢ घाम हयियार तथां भर्िके संबन्ध मे जैसी व्यवस्था फरो दै वष | सब आपने णाखाक्त रीतिसे की दै॥ ७ ॥ परन्तु श्रापको तथा धरञंस ` फो दल द्रोपदीकी सक्ता सावधानीत्ते करनी दोगी, तुम सथ लोकि | , ध्यवद्दारोकी जान्तेदोतो भी स्नेदिर्योको प्रीतिपृवंक स्नेदियौ से | लौकिक व्यप्र फी वातं करनी चाद्ये चयोकि--ल्ो किफ व्यवद्दार | से ही धमं प्रथं शरोर कामकी रक्त दोती है अतः मैं भी घुमसे फदतो ह तुम मेरे फहनेके प्रयोजदकी ओर ध्यान दो । दे कुरुवंशो राजपु न न 0100-1 १ रे 72 0-८>>2 টস পথ +^ ^ ~ শর पि




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