अथर्ववेदसंहिता | Atharvvedsanhita
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
832
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३ )
हे जलेग्रे शुरू हुईं प्रतीत होती दूँ अ्रचोचाच प्रतीत होती है | जिन উহ
अन्त्रेकों इस कम में विनियक्र किया गयाहई उनका उससे कोई सम्बन्ध नहीं
है। इसी प्रकार स्त्री के जलाये जाने को भी समझना चाहिये । प्रस्तुत भाप्ये
से संदेह निवारण कर लेना चाहिये । हमारा विचार है कि चाहे कीशिकादि
न
-कन्पोक्र कमस्नरड विधि किनसी ही प्राचीन क्यान हो,तो भी एकदेशी ही है
क्योंकि इससे मित्र र विधियां भी अ्रन्य गरहासत्रा मे देखी जातो हैं ।
इसलिये इन থলুলিভা ন হল उपादेय अश से लेना चाहिये और त्याज्य
अश की उपेक्षा कर देनी चाहिये । मन्त्र अपन भीतर विनियोग दने केः `
জি विशेष देघु नहीं रखता । मन्त्र तो केचन्न अर्थ का स्मारक हैं । उनमें
मानत्र-जीवन के कत्तत्यों रा ही श्रधिकतर निर्देश हैं| जिनका स्मरण 4
के अवसरपर कराना टाचेत है आनिससे सनुष्य अपने लीवन एर उचम विच्य
करे और कत्य कोन सूलः
ˆ (5) জন্াঙ্থাহ थोर श्रनुस्तरणीं 1
पद्धति में (३१ ३ ) सन््त्र का विनियोग रत पत्ति की स्त्री की पति
चिता में बैठने का दें रक््खा है । इससे संदेद्द होता है कि क्या वेद मन्त्र
1
दाह की श्राज्ञा देता है । साथग ने विनेयोग लिखा है --'श्रायया
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भार्यां प्रेतेन से संवशयेत्र ।? प्रथम ऋचा से चिता सें भागों को
खत पुरुष के साथ लेट ই | सन्त्रपाठ इस प्रकार दै--
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॥ 2)
इये नारी पतिलोरं दृश्याना निपद्यत उप व्वा मचय परेतम् ।
खमे पुराख मनुपालयन्ती तन श्रयं द्विया चद येद ॥ ,
“यह नासे पनिद्धोकका चरण.करती. हद, पुराण धमे का पालन
करती हुई, तुझे मत पुरुष के पास आती डे सू ठसको यहाँ धरना और धन
प्रदान करा इस वास्य-रचना से स्त्री को तला देने का अथ केस निकाला
नानः दं यह श्नाश्रमजनष् है । सायगाचाये ने-पतिल्ोक् का अर्थ किया
ह यान, दान, होदि स प्राह स्वगोदि फञ्च । 'निपय्य' का अय (नवरः -
= हुं =
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