प्राचीन राजस्थानी गीत (भाग - 5) | Pracheen Rajasthani Geet (Bhaag 5)

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Pracheen Rajasthani Geet (Bhaag 5) by हनुवंतसिंहदेवडा - Hanuvant Singh Devna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ प्राचीन राजस्थानी गीत जाग जाम मल रूम मर्ज । রুহ पतित्रत अनुराग दलां॥ आग सनान करें दन आखर | भोगे जिके सुहाग भरता ॥ ४॥ भावषार्थ:--हृदयों में जिन के पतित्रत की इृढ़ता हे और जिन की बुद्धि मेर पवेत के समान निश्चल है; उन सतियों ने ज्वाज्ाओं में बेठ कर अग्नि स्नान किया ॥ १॥ जिन्होंने अपनी देह को पति के साथ आग की लपटों से दग्घ करने में पल्ल भर का भी विल्मम्ब नहीं किया- उत्तका पति-प्रेम इस संसार में सचमुच अनुपम है | २ ॥ एकत्रित जन-समुदाय कह रहा हे-कि सतियाँ अपने प्राश-वल्लभ के साथ ज्ञा रही हैं। इनके जिन छुकुमार शरीरों से अपने प्रियतम कौ सब प्रकार की इच्छाओं का जिस प्रकार अनुवतेन किया, . आज उसी दाम्पत्थ-प्रेम से प्रेरित हो, अग्निदाह को भा अंगीकार कर रही है !।३॥ जिस खमय अमरसिष् का मरण संवाद सुता, उनके मस्तक ऊँचे हो गये मानों आकाश से जा लगे। युद्ध के बाजे वजने लगे और वे आरक्त ओजस्वी मुलाकृति बाज्ञी हरिनाम का उच्चारण करती हुई मंद मुसकान के साथ घोड़ों पर सवार हो गई । अपने अलौकिक पतित्रत से प्रेरित हो ये कोमलज्ञांगियाँ अपनी देहों को दम्ध करने जा रहीं हैं । १ ॥ तीन विशुद्ध कुज्ञ की और एक उप पत्नी--चार्सो ने पति- प्रेम की सीमा दिखा दी। अमरसिंह की इन सतियों को धन्य हैं, जिस प्रकार सुसज्जित पुष्प शय्या पर ये पीढ़ा ( सोया ) करती थीं; चाज उसी सदन भव सेये धधकती उबालायीं की चिता के पर्यदक पर पौदी है ॥२॥ हपपत्नी, बीरपुरी, चावडी श्मौर पु'बार-चारों ने अपनी देह होम दी ।




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