श्री अन्तकृद्दशांडग सूत्र | Shri Anatkradhshadang Sutra

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Shri Anatkradhshadang Sutra by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* चौदह : पक भर्जन अनगार के अतिरिक्त शेष सभी चरित-नायक राजकुलश्रौय श्रेष्ठी कुल मे उत्पन्न अन्तक्ृत्‌ हुए हैं । स्थान्त अ्रनगारो मे एक गजसुकुमार का निर्वाण इमशान भूमि में हुआ है दोप सभी अनतगार दुजय और विपुलगिरि पर सथारे के साथ निर्वाण प्राप्त करते है । सभी साध्विया उपाश्चय मे ही अ्रन्तकृत्‌ हुईं | नर-नारी पाचवे, सातवें शोर आठवें मे तेंतीस राजरानियो के जीवन-चरित है जो कि अतकृत्‌ हैं दोष सभी पुरुष अन्तकृत्‌ हुए हैं । शासन ८ प्ररिष्टनेमि भगवान के शासन मे तेंतीस अनगार शअ्रन्तक्ृत्‌ केवली हुए और महावीर भगवान के शासन मे सोलह अनगार अन्तकृत्‌ केवली हुए । भगवान अ्ररिष्टनेमि के शासन मे दस्तु ,महारानिया दीक्षित होकर श्रतकृत्‌ हुई झोर भगवान महावीर के शासल मे तेंतीस महारानिया दीक्षित होकर अ्रतकृत्‌ हुई । भगवान अरिष्टनेमि के शासन मे यक्षिणी नाम की साध्वी प्रवर्तंनी हुई और भगवान महावीर के शासन मे श्रार्या चन्दवाला प्रवत्तिनी साघ्वी थी । प्नं स्नपा सके च्िन्नोंस्तिच्छी च््खो पः अध्ययन के लिये मन एव मस्तिष्क का स्वस्य एव शान्त होना श्रावश्यक होता है, मानसिक एच वौद्धिक स्वस्थता के लिये वातावरण को लान्ति ्ननिवाये है । इसी तथ्य को लक्ष्य मे रखते हुए शास्त्रकारो ने स्वाध्याय के समय की कुछ सीमाए निर्धारित को हैं, किन्तु श्रन्तगडसूत्र के लिये कोई सीमा निर्धारित मही की गई, श्रत इसकी पृष्ठभूमि मे कोई चिह्येष कारण अवश्य रहा होगा । श्री सुधर्मा स्वामी ने महाराज कोणिक के शासन-कालमे चम्पानगरी के पूर्णभद्र उद्यान मे जव जम्बु स्वामी को अन्तगङसूत्र का अध्ययन कराया था, वह काल पर्यपपण काल न था और झास्त्रो से कही पर भी पर्युष ण-काल मे ही अ्रन्तगड्सूत्र की बाचना का विवान प्राप्त नही होता, परन्तु पर्यूषणो मे ही श्रन्तगडसूत्र के अध्ययन एवं श्रवण की प्राचीन परम्परा विद्यमान है। तव प्रदन होता है कि इस परम्परा के प्रवर्तत का क्‍या कारण हो सकता है ? अमत-पान का कोई समय नहीं होता, बह जब भी पिया जाय तभी लाम कारी होता ह । कथा-साहित्य के द्वारा प्राप्त होनेवाले उपदेदशामृत को भी सर्वदा पिया जा सकता ॐ श्रत इस कथात्मक क्षास्व के स्वाच्याय का कोई विशेष समय निर्वारित नहीं ता किया गया ।




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