श्री भगवत- दर्शन (खण्ड ४) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 04 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 04 ] by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जंगली गोपों द्वास पराजित होने का शाप १५ “घुड़ककर वह तपस्विनी बोली--'तू कैसी बातें कर रहा १, रे लड़के ! लज्जा, कया, फाहे की. लजा ? इस हाड़-चाम के बने शरीर में लज्जा करने की कोन सी वस्तु है. ? किसी भी अंग में पंचमूर्तों के अतिरिक्त कोई वस्तु हो तो उसे मुके बताओ॥। प्त, रक्त, मांस, मज्ञा, मेदा, श्रस्थि, रज, वीर्य, मूत्र, पिष्ठा+ फश, रोम, शिरा, नाड़ी इनके अतिरिक्त इस शरीर में क्या है प्रभी अंग इन्हीं चीजों से बने हैं। किसी अंग में कोई विरोपता गहीं। जिन वस्तुओं के हाथ, पेर मुँह आदि बने हैं उन्हीं से प्व गुप्त प्रकट इन्द्रियो बनी है । इसमे लजा फी कौन सी पात १ नंगी दी हो जाती तो उसका क्या विगड़ जाता? होः जाती ! मेरे श्यामसुन्दर को इतना कष्ट तो सदन नदीं करना: पड़ता ? उनके सुख में विन्न तो न पड़ता । ` “भगवान्‌ बोले--माताजी ! भक्त अपने भगवान से दुःख में सब कुछ कहता है. “चुड़िया घोली--ऐसी भी क्या भक्ति ९ पने सुख के लिये अपले इप्ट को कप्ट देना। अपने काम के लिये भगवान के कार्यों मे विक्षेप डालना। सें ता इसे भक्ति नहीं मानती और इसीलिये उन पांडवों की महरारू के ऊपर मुके बड़ा क्रोध आ- रहा है.। यह वीच वाली तलवार उसी के लिये मैंने रख छोड़ी है कि जहाँ वह मुके मिल जाय, वहीं उसका सिर घड़ के अलग कर दूँ। उसके अपराध को बात याद आते ही मेरे -बृद्ध शरीर में बल आ जाता है, रग-रग में रक्त दोड़ने लगता है |? श #भगवान्‌ हँसते हुए बोले--“अच्छी वात दै, अज्ञैन फे अपराध को हम और सुनना चाहते हैं।उस पर आप इतनी क्यों कुपित हैं. ९?




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