श्री भगवत दर्शन (खण्ड - ९२) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 92 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
197
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९३ )
उसने कहा--“घथी यहाँ नहीं मिलटा। तैल दाल में डाला
जाता है।”
मैंने कहा--हम थी नहीं मॉगते । चूल्दे के नीचे सिक्की रोटियाँ
चाहते हैं. ।?
तय किसी भारतीय कर्मचारी ने अँगरेजी में उसे सब छुछ
समझाया । वह अन्छा कहकर चला गया। मेरी आचार पत्रिका
( हिस्द्री टिकट ) मेंगायी गयी । उस पर लिख दिया गया भयावद्द
बन्दी ( डेस्जरेस प्रिजनर ) सतरनाक कैदी-ओऔर तुस्न्त मुझे
फेनाबाद कारात्रास फे लिये भेज दिया गया । बरेली कारावासे
मैं दो था तीन दिन ही रहा ।
फैजाबाद का कारावास विशेपरूप से राजनैमिक बन्दियों
के लिये ही अतिरिक्त कराया गया था । उसके काराबासाधिकारी
रायपहाादुर मिट्ठन लाल जी बनाये गये थे | ये पहिले चुनार फी
बाल अपराविनी जेल के अधिकारी ये । सरकार के शुम चिन्तकों
में माने जाते थे तभी तो रायबहादुरी की उपाधि प्राप्त हुई | बडे
चालू मधुर भाषी-सूम बूक के व्यक्ति थे । मेरी आचार पत्रिका-
देसकर बोले -“आपने बरेली में कोई उपद्रव कराया था ??
मैंने कहय--“नहीं, तो ९ सिकी रोटिया की मॉम की थी ।”?
राय बद्दाहुर घोले--/“अच्छा, अच्छा कृपा करके थद्दों कोई
ऐसा उपद्रव न करावें । आप जो कहेंगे हम बही करेंगे । आपको
कोई कष्ट न होने पावेगा 17
वहाँ ५२ कारावास में स््रतन्त्रता थी। बाडों मे वद् नहीं होना
पडता । पूरे कारावास से कहीँ जाओ किसी से मिलो, जो चाद
सो करो 1 भोजनालय मरं मी हमारे ही आदमी जाते, जैसा वाहते
भोजन बनाते । राय बहादुर जी सबसे हँस-हँसकर आत्मीय
जनों की भाँति बातें करते। वहाँ कारावास-सा लगता ही नहों
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