श्री भगवत दर्शन (खण्ड - ९२) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 92 ]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९३ ) उसने कहा--“घथी यहाँ नहीं मिलटा। तैल दाल में डाला जाता है।” मैंने कहा--हम थी नहीं मॉगते । चूल्दे के नीचे सिक्की रोटियाँ चाहते हैं. ।? तय किसी भारतीय कर्मचारी ने अँगरेजी में उसे सब छुछ समझाया । वह अन्छा कहकर चला गया। मेरी आचार पत्रिका ( हिस्द्री टिकट ) मेंगायी गयी । उस पर लिख दिया गया भयावद्द बन्दी ( डेस्जरेस प्रिजनर ) सतरनाक कैदी-ओऔर तुस्न्त मुझे फेनाबाद कारात्रास फे लिये भेज दिया गया । बरेली कारावासे मैं दो था तीन दिन ही रहा । फैजाबाद का कारावास विशेपरूप से राजनैमिक बन्दियों के लिये ही अतिरिक्त कराया गया था । उसके काराबासाधिकारी रायपहाादुर मिट्ठन लाल जी बनाये गये थे | ये पहिले चुनार फी बाल अपराविनी जेल के अधिकारी ये । सरकार के शुम चिन्तकों में माने जाते थे तभी तो रायबहादुरी की उपाधि प्राप्त हुई | बडे चालू मधुर भाषी-सूम बूक के व्यक्ति थे । मेरी आचार पत्रिका- देसकर बोले -“आपने बरेली में कोई उपद्रव कराया था ?? मैंने कहय--“नहीं, तो ९ सिकी रोटिया की मॉम की थी ।”? राय बद्दाहुर घोले--/“अच्छा, अच्छा कृपा करके थद्दों कोई ऐसा उपद्रव न करावें । आप जो कहेंगे हम बही करेंगे । आपको कोई कष्ट न होने पावेगा 17 वहाँ ५२ कारावास में स््रतन्त्रता थी। बाडों मे वद्‌ नहीं होना पडता । पूरे कारावास से कहीँ जाओ किसी से मिलो, जो चाद सो करो 1 भोजनालय मरं मी हमारे ही आदमी जाते, जैसा वाहते भोजन बनाते । राय बहादुर जी सबसे हँस-हँसकर आत्मीय जनों की भाँति बातें करते। वहाँ कारावास-सा लगता ही नहों




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