श्री भगवत दर्शन (खण्ड - १००) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand -100 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand -100 ] by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३) बेदान्त पढ़ाने लगे | खुरजा के सेठ ने उनकी मित्षा का समुचित्त प्रबन्ध कर दिया था । स्वामी अच्युत मुनि जी का पूवोश्रस का नाम पं० दौलतराम था, वे आर्य समाज के उपदेशक् थे। और डी० ए० वी० कालेज में पढ़ाते भी थे। घर छोड़कर वे ग्रृहस्थी वेप से हो ऑगरखी पाइजामा पहिनकर गंगा किनारे-किनारे विचरते रहे । थे वेदान्त के भ्रमाद्‌ विद्धान्‌ ये । पेचदशी उनका इष्ट ग्रन्थ था) वह्‌ उन्दः प्रायः कटस्य था । समो को इसे पदति थे । हमारे श्रीहरि वावा ज्ञी भी पहिले-पहिल इन्हीं के पास आकर कुछ दिनों तक वेदान्त चढ़ते रहे एष वार अत्यन्त रुग्ए होने पर इन्होंने अपने ही आप आतुर संन्यास ले लिया, तभी इनका नाम अच्युत्त मुनि पडा। खुरजे के सेठ गौरीशकरजी गोयनका वड़े भावुक ये । बे इनकी विद्वत्ता से अत्यन्त प्रभावित हुए । उन्होने ही एक सुन्दर बजरा इनके लिये बनवा दिया था। उसी मे थे गंगा के बीच में रहते थे । समाचार पत्र पढ़ने का इन्हें अत्यन्त व्यसन था। दो चार समाचार पत्र वे नित्य मँँगाते । देश काल की परि प्थितिका इन्दं बहुत कषान था। ने बुलन्दश्र जिले में हो कार्य किया था। अतः वे मेरे माम से तो परिचित ही थे। इस अवस्था में हमें देसकर वे बड़े प्रसन्न हुए। बहुत देर तक देश सम्पन्धों बातें करते रहे। उसी समय बम्भई से 'कल्याण! आखसिक पत्र निकलना आरमस्म हुआ था। उसका प्रथम अद्ू हमने उनके ही पास देखा था। पीछे चद्द गोस्सपुर से निकलने लगा भौर उसने वड़ा ख्याति प्राप्त कर ली.। आज वह घार्मिक पत्रों में सर्चभेष्ठ पत्र है। दो लास फे लगभग उसके माइक हैं । भेरिया से चलकर हम अनूपशहर में आये। अनूप >। भी उन दिनों साधु सन्‍्तों का अड्डा था। वहाँ गुजरातो क्रे




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