नीतिवाक्यामृतम् | Nitivakyamritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ डाला «। इत्यादि । पौराणिक आख्यान भौ बहुतते भये दै । जैसे प्रजापति ब्रह्मा- ` -का चित्त अपनी रुकी पर चायमान हो गया, वरङचि या कात्यायनने एकं -दासीपर रीक्षकर उसके कदनेसे मद्का धद उटाया, आदि >८ । इन सब बातोँसे पाठक जान सकेंगे कि आचाय सोमदेवका ज्ञान कितना विस्तृत और व्यापक था। उदार विचारशीछता । यशस्तिलकके प्रारंभके २० वें छछोकमें सोमदेवसूरि कहते हैः-- छोको युक्तिः कछाइछन्‍्दोडलंकाराः समयागमाः । सवैसाधारणाः सद्धिस्तीथेमागै इव स्मुताः॥ अर्थात्‌ सजरनोका कथन है कि व्याकरण, प्रमाणश्चाह्न ( न्याय ), छन्दःशाख्, अङंकारशाल्न ओर (आर्हत, जैमिनि, कपिर, चार्वाक, कणाद, बौद्धा- दिके) दशना तीर्थमार्गके समान सवसाधारण दं, अर्थात्‌ जिस तरह गेमादिके माग पर ब्राह्मण भी चल सकते है ओर चाण्डाल मी, उसी तरह इनपर मी सबका अधिकार है । + इस उक्तिसे' पाठक जान सकते हैं कि उनके विचार ज्ञान ॐ सम्बन्धर्मे कितमे उदार थे। उसे वे सर्वसाधारणकी चीज समझते थे और यही कारण है जो उन्होने धर्माचाय होकर भी अपने धर्मसे इतर धर्मके माननेवालोंके साहित्य का भी अच्छी तरसे अध्ययन किया था, यदी कारण है जो बे पूज्यपाद ओर भह अकरकदेवङे साथ पाणिनि आदिका भी आद्रके साथ उक्ेख करते ह ओर यदी कारण है जो उन्होंने अपना यह राजनीतिशाञ्र बीसों जैने- -तर आचार्योके विचार्रोका सार खींचकर बनाया है । यद सच दै कि उनका जैन -सिद्धान्तों पर अचल विश्वास है और इसीलिए यशस्तिलकर्मे उन्होंने अन्य सिद्धा- * यशस्तिकक आ० ४, ४० १५३ । इन्हीं आख्यानोंका उल्लेख नोतिवाक्या- मृत ( ४०२३२ ) में भी किया गया है। आइवास ३, ए० ४३९ और ५४७७ में भी ऐसे ही कई ऐतिहासिक दृश्शान्त दिये गये हैं । > यश०आ०४ १०१३८--३९ । এ + ^“ लोको व्याकरणशाल्ञम्‌ , युक्तिः प्रमाणशात्रम्‌,.. .समयागमाः जिनजै- मिनिकपिलक्रणचरचाव कश्चाक्यानां सिद्धान्ताः । स्वैसाधारणाः सद्भिः शुथिती प्रतिपादिताः । क इव तीर्थं माग হল । যখা तीम ब्राह्मणाश्वङम्ति चण्डालं अपि गच्छन्ति, नास्ति तंत्र दोषः ।“--श्रुतसरामरीटीका ।




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