सहज सुख साधन | Sahaj Sukh Sadhan

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Sahaj Sukh Sadhan by बी. सीतलप्रसाद - B. Seetalprasaad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रहज रुख छात ই संसार स्वरूप शारीरिक शथा मानसिक दुःखों से मरा हुआ यह संसाररूपी खारा समुद्र है। जैसे खपरे समुद्र से प्यास बुझती नहीं बैसे संसार के नाशंवंत पद के भोग से तृष्णा वी दाह शमन होती नहीं । बड़े २ सम्नाठ भी संसार के प्रपेंषणाल ' से कष्ट पाते हुए अन्त में मिरांश हो मर जाया करते है। षस संसारके चार गतिरूपी विभाग हैं-नरक गति, सिर्गब गति, देव गति, मनुष्य गति । इनमे से तिर्थच गति वे मनुष्य गति के दुःखतो प्रत्यक्ष प्रगट हैँ । नरक गतिवदेव गतिके दुख यद्यपि प्रगट नहीं हैं तथापि आगम के द्वारा श्री गुरु बच्चन प्रतीति से जानने योग्य हैं । (१) नरक गति के हुःह--नरव गति में नारवी जीव दीर्घ काल तक वास करते हुए कभी भी सुखशात पाते नहीं। निरंतर परस्पर एक दूसरे से क्रोध करते हुए बचन प्रहार, शस्त्र प्रहार, कायप्रहार आदि से कष्ट देते व सहते रहते हैं, उनकी भ्रूख प्यास की दाह मिटती नहीं, मद्चपि वे मिट्टी खाते है,बंतरणी नदी का खाराजल पीते हैं परन्तु इससे न क्षघा शांत होती है न प्यास $भती है। दारीर वेत्रियिक होता है जो छिदने भिदने पर भी पारे के समान मिल जाता है। बे सदा मरण चाहते है १रूतु वे पूरी आयु भोगे बिना नरक पर्याय छोड नहीं सकते | जैसे ०्हों विसी जेल खाने में दृष्टबु द्िधारी चालीस-पचास कैदी एक ही बडे करे में रख दिये जावें तो एक दूसरे को सत्ताएँगे, परस्पर कुबचन ब। लेंगे, लड़ेंगे, मार पीटेंगे और वे सब ही दुःखी होंगे व घोर बष्ट पाने पर सदन करेगे, चिह्लावेंगे तो भी कोई बंदी उन १२ दया नही करेगा। उलटे वाकप्रहारके वाणोसे उनके मन को छेदित क्या जायगा | यही दशा नरवधर! में नारकी जीवों की है। वे पंचेन्द्रिय संनी नपुसंक होते हैं। पांचों इरिद्रियों के भोगो वी तृप्णा रखते हैं। परन्तु उनके शमन का कोई साधन न पाकर निरंतर क्षोभित व संतापित रहते हैं । नारकियों के परिणाम बहुत खोटे रहते हैं । उनके अशुभत्तर कृष्ण, नील ब कापोत तीन लेध्याएँ होती हैं । ये लेश्याएँ बुरे भावों के हृष्टान्त हैं। सबसे बुरे कृष्ण लेश्या के, मध्यम बुरे नील लेश्या के, जधन्य “खोटे कापोत लेश्या के भाव होते हैं । नारकियों के पुदगलों का रपर्श, रस, गंध, वर्ण सर्व बहुत अशुभ बेदनाकारी रहूता है। भूमि बंश दुर्गन्‍्धमई होती




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