समाधि-मरणोंत्साह -दीपक | Samadhi-Marnotsah-Dipak

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Samadhi-Marnotsah-Dipak by पंडित हीरालाल जैन - Pandit Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संम्पादकीय द चायं भीसकलकीर्ति वसं २६ छवीसनी संख्या { वस्या ) हत्थी, ती बारें संयम लेई वर्ष ८ श्रीगुरुपासे रहीने व्याकर्ण भरया, तथा काव्य तथा न्‍्यायशाख तथा सिद्धान्तशासत्र, गोस्मट्सार तथा तिलोक- सार तथा पुराण सर्वे तथा आगम तथा अध्यात्म इत्यादि ? स्शाश्व पूवं देश माह रहीने ८ वषं माहे भणिमै श्रीषागड गुजरात माह गाम ভু पधारथा वषं ३९ नी श्रवस्या थई । तीवारे सं० ९४७९ वरव खुडेणे षधारथा । सो दीन ३ तो केण आचाणे ऊ लखा नाहीं, पीछे साहश्रीपोचागृ्े आहार लीधो । तेहां थको भ्रीबागडदेश तथा गुजरात देशमांहै विहार कीधो । वषं २२ पयत नप्र हता ज़ुमले वषं ५६ छपन परयत श्चाबदौ ( श्चायु ) भोगवीने धम॑प्रमवीने सं० १४९९ गाम मेसांणे गुजरात स्याहीने श्रीसकलकीति स्वगेलोक तथा जैसी गति वंध होतोः ते बंध बांधिने प्राज्ञ ( परोक्ष ) थयाजी' ।' परन्तु रासमें १८ वर्षकी अवस्थामें सं० १४६३ मे पद्मनंदिसे दीक्षा लेने. संयम पालने तथा श्राषार्यपदं पानेकी बात कटी गड है, । इससे दोनो कथनोमे परस्पर अन्तर हो गया है, जो किसी भूल वा गलतीका परिणाम जान पडता है । पत्रकी बात छु सही जं चती है । १, यह ऐतिहासिक पत्र जेनसिद्धान्तमास्कर भाग ११ पृ० ११३ पर छपा है । २, वित पन्न वर्त भ्रठार सबल परि संयम लेइए ॥२६ चद श्र्षरि वीस खंडलि घन विनु बे चीऊए्‌ । मोह मान मद मूकि पदमनंदि गुर दीखियाए ।२७ पच महाब्रत धार पंचह इद्र जिं वा करीद्‌ । चहुदिसि करि विहार सकलक्षीरति मणहररयर ॥२८ नयणाची हुनि रूप झाचारिज़ पद पामीयूए ।--( सकलकीतिरास ) ३, जहाँ तक हमने इस विषयपर विचार किया है, हमें वह भूल या गलती




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