समाधानचन्द्रिका | Samadhan Chandrika

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Samadhan Chandrika  by शिखचन्द्र जी शास्त्री - Shikhar Chandra Ji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ 5) कि वक्ता अपने अभिप्राय को वचनों से प्रकट करता है। आर वे वचन रिकार्ड मशीन में रिकाड (अक्वित) द्वो जाते हैं । जैसे तीव्र मंद कण्ठ तालु ष्ठ॒ जिह्ादि कै संबंध से निके | बचन होते हैं वेसे दी मशीन में आ जाते हैं ओर वे फिर सुने जा सकते हैं परन्तु मशीन के अभाव में वे बचन नहीं पकड़े जाने से नष्ट द्ो जाते हैं तथा आगामी भी श्रवण नहीं किये जा सकते। उस मशीन के रिकाड से वक्ता को अपने बचन फिर स्वीकार करने पड़ते हैं कि हां मैंने ऐसे कद्दे हैं। अब दाष्टोन्त पर ध्यान दीजिये । इसी प्रकार द्वव्यकर्म हैं। द्रव्यकर्म में तीत्र मदादि रागादि होने के समय में ही स्थिति अनुभाग पड़ जाता है। ओर वे अनुभाग युक्त द्रव्यकम जिस प्रमाण के होते हैं बेसे ही अपना फल देते हैं। यद्यपि मशीन वक्ता से भिन्न हे तथापि बक्ता के पूव बचनों को निदेशक है.। इसी प्रकार द्रव्यकम भिन्न होते हुवे भो एक क्षेत्रावगाह रूप से स्थित हैं. भोर वे दी आत्मा के विकार के उत्पादक हैं । समयसार गाथा २०४ निजंरा अधिकार की टीका मे यहो कट्दादे ओर तारतम्य की सिद्धि का भी प्रमाण यह एर पुष्कल है। तथादिः- यथात्र सवितुंनपटलावथुणिटतस्य तद्विषरनानु- सारेण आकस्यमासदयत; प्रकाशनातिशयमेदा न्‌ तस्य म्रकाशस्वभावं भिंदंति । तथा-आत्मन: कमपटलोदया- वगुण्टितस्य तद्विघटनानुसारेण प्राकव्यमासादयतो ज्ञाना- तिशयमेदा न तस्य ज्ञानस्वभाव' मिन्युः । किन्तु प्रत्युत तममिनन्देयुः ।




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