विश्व सूक्ति कोश भाग 3 | Vishv Sukti Kosha Vol. 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा ये द्रष्टार सदसतां ते धर्म विगणा क्रिया । वयमेव विदध्सदचेद्यातु न्पायेन कोड्ध्वना ॥। यदि हम शासक लोग हो जो सत्‌ व असत्‌ के द्रष्टा हैं धम-विरुद्ध कार्य कर तो न्याप-पथ पर कौन चलेगा ? -कत्हण राजतरंगिणी ४1६० पुत्रपत्नोसहुद्भत्या येघां डांकानिकेतनम्‌ । विस्रम्भभर्भपतीनां कर्तेवामिति वेत्तिक ॥। पुत्र स्त्री मित्र ओर भृत्य पर जो शंका करते है वे राजा किन का विश्वास करते है इसे कौन जानता है ? -कल्हण राजतरंगिणी ८। १२४४ प्रायो नुपा नियमठान्यमनो5नभावा । प्रायः राजा लोग अनियमित मन वास होते हैं -कत्हण राजतरंगिणी ८१६११ अतथ्य॑ तथ्ववद्वस्तु तथ्यं वातश्यवन्नप । य पश्यन्मृढवत्‌ सो थेस्त्यक्तो न थे कदथ्यंते ॥। जो राजा मुर्खबत्‌ असत्य को सत्य या सत्य को असत्य मानता है मे समनियाँ त्याग देती है और वह अनथों से पीड़ित होता है । -पकत्हण राजतरंगिणी ८।२०८ ३ भूत्योरिवोग्र दण्डर्य राज्ञो यास्ति बचचं हिष । दाष्पतुल्यं हि. मन्यन्ते दयालूं रिपवो नूपम्‌ ॥। शत्रुगण मृत्यु के समान उम्र दण्ड वाले राजा के वश में भा जाते है परन्तु दयानु राजा को तिनके के समान समझते हैं । -विष्णुधर्मा पंचतंत्र ३३० दूरादवेक्षणं हास संप्रदनेष्वादरों भूगम । परोक्षेपपि गुणइलाघा स्मरण प्रियवस्तुषु ॥। असेवके. चानुरक्तिदर्दन सप्रियभाषणम्‌ । अनुरकतस्य चिहनानि दोषपि गुणतंग्रहु ॥। दूर से निहारना हँसना बात पूछते समर अधिक गादर दिखाना पीठ पीछ भी गण का वर्णत करना और अपनी प्रिय वस्तुओं में स्मरण करता जो सेवक नहीं है उस परे प्रेम करना मीठी बात करते टुए कुछ देना और दोष से भी गुण ग्रहण करना ये प्रमन्त राजा के चिह्न है । -उनारायण पंडित हितोपदेश २1५१-६० €२० / विश्व सुब्ति कोश अनाथानां नाथो गतिरगतिकानां व्यसनिनां विनेताभीतानाम भय सधती नां भरवदा । सहद बन्ध स्वामी दारणमुपकारो वरगुरु पिता माता स्राता जगति पुरुषों य स नुपति ॥। वही मनुष्य वास्तविक नुपति है जो अनाथों का नाथ निरुपायों का अवलंध दुष्टो को दड देने वाला डरों हुओं को अभय देने वाला भीरुजओं को भरण-पोपण करने वाला और सभी का उपकारक मित्र बन्घर स्वामी आश्रयस्थल श्रेष्ठ गुरु पिता माता तथा भाई है । -अज्ञात अन्यान्यं कुरुते यदा क्षितिपति कस्त॑ निरोद्धं क्षम । जब राजा अन्याय करता है तो उसे रोकने में कौन समर्थ होगा ? -अज्ञात भत्यान्तरापरिज्ञानमात्रेण जगतीभुजाम । निरागसो बख्जपात कष्ट राष्ट्रय जायते ॥। कितने कष्ट की बात है कि राजा लोग अपने कमें- चारियों के आन्तरिक भेद को न जानने के कारण निरपराध सष्ट पर वख्जपात करते हे। -अन्ञात राजा और देव बराबर होते है ये जो करें सो देखते चलो बोलने की तो जगह हो नहीं । --भारतेन्दु हरिइच्द् विषस्थ विषमोषधम रत्नजटित मुकुट तुम्हें भगवान ने इसलिए नहीं दिया किलाखोंसिरों को तुमपेरों से ठुकराओ । -उजयशंकर प्रसाद राउयश्री तृतीय अंक नृपति चाहिए क्योकि परस्पर मनुज लड़ा करते है। खडग चाहिए क्योंकि न्याय से त्रे स स्वयं डरते हैं। -रामधारीसिह दिनकर कुरुक्षेत्र सप्तम सर्ग देवता और राजा दोनों एक से ही हैं। ये जब तक मंदिर के बाहर न निकलें तभी तक पुजा करने लायक है। -उसरदार पटेल सरदार पटेल के भाषण पु० ३७४




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