श्रीभद्रबाहु चरित्र | Shri Bhadrabahu Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ भद्रवाहु-चरित्र । आज आपके चरण-सरोजके दरोनते मै सनाथ हुआ । तथा आपके पधारनेसे मेरा रह पवित्र हआ । विमो! मुझदासके ऊपर कृपाकर किसी योग्य कायेसे अनुग्रहीत करिये। बाद सुनिराज मधुर बचनसे बोले-भद्गर ! यह तुम्हारा पुत्र भद्रबाहु महाभाग्यशारी तथा समस्त विद्याका जानने वाला होगा। इसलिये इसे पढ़ानेके लिये हमे देदो । में बडे आदरसे इसे सब शास्त्र बहुत जल्दी पढा- ऊंगा । मुनिगजके बचन सुनकर कान्ता सहित सोमम बहुत प्रसन्न भा । फिर दोनो हाथ जोड कर बोला-प्रभो | यह आपहीका पुत्र हे इसमें मुझे आप क्या पूछते हैं। अनुग्रह कर इसे आप लेजाईये और सब शाख पदाईैये । सोमशमेके कहनसे-मद्र बाहुको अपने स्थान पर लिवाटेजाकर योगिराजने उसे व्याकरण,साहित्य तथा न्याय प्रशुति सव शाख पटाये । यदपि भद्रबाहु व्याचष्ट विहिताझललि! ॥ ७* ॥ सनाथो नाथ ! जातोऽ त्वत्पादाम्भोजवीक्षणात्‌ । मामकं समभूुदथ पूतं गें त्वदागतेः ॥ ७१ ॥ विभो ! मयि कृपां कृत्वा कृद किश््निरुप्यताम्‌ । व्याजहार ततो योमी गिरा प्रस्पष्टमिष्टया ॥ ७२ ॥ भवदीया- ऽऽत्मनो भद! भद्रबाहुसमाह्वयः । भविताऽयं महाभाग्यो विश्वव्रियाविश्चारदः ७३ ततमे दीयतामेषो ध्यापनाय সন্থাহ্যান্‌ | হাজাগা सकलान्येने पाठयामि यथाऽचिरात्‌ ।॥ ७४ ॥ गुरुग्याहारमाकण्यं बभाण स्रियो द्विजः । महानन्दथुमापश्नो सुकुलीङ्घल्य सत्करौ ॥ ७५ ॥ यौसाकोऽगरं खतो देव॒} किमन्न परिप्च्छथते । पाठयन्तु कृपां कृतवा शाल्नाप्येनमनेकशः ॥ ५६ ॥ इति तद्वाक्यतो नीत्वा कुमारं स्थानमात्मन; । शब्दस्तादिलयतकांदशान्नाण्यध्यापयदयराम्‌ ॥ ५७० ॥ गुरूपदेशा-




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