माटी हो गई सोना | Mati Ho Gai Sona
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बयालीसके उ्वारकी उन लहरंमें १७
“तब ठीक है, मैंने पीठपर गोली नहीं खाई !” उसने कहा और
हमेशाको आँखें मूँद लीं |
इन शहीदोंकी देहसे जो गोलियाँ निकलीं, वे “दमदम बुलेट” थीं-
अन्तर्यष्रीय विधानके अनुसार इन गोलियोंका प्रयेग युद्धोंम भी वर्जित है,
पर अंग्रेजी शासनके लिए. उन दिनों न नियम थे, न पाबन्दियाँ । गोली
मारना, जेखमें दूस देना, पीरना, घर फूँकना, गाँव उजाड़ देना और जाने
क्या-क्या मामूली बात थी।
उन्हींके एक आदमीके शब्दोंमें-“पुलिस और फौजको गाँवोंमें खुल-
कर खेलनेके लिए छोड़ दिया गया था। नेशनल वारफंय्के लीडरकी
हैसियतसे अपने, ज़िलेके गाँवोंमें घूमते समय मुके फौज और पुलिसके
अत्याचारों, जनताकी सम्पत्तिकी ढूट-खसोट, गाँवोंकों जलाने, गिरफ्तारीका
भय दिखाकर रुपये एंठने ओर कभी-कमी वसूीके लिए घोर यन्त्रणा
देनेकी भी अनेक रिपोर्ट मिली हैं ।
पुलिस-द्वारा छूटी गई दूकानें तथा जलाये गये गाँवके गाँव मैंने
अपनी आँखोंसे देखे ओर में मब्जूर करूँगा कि वे दृश्य मरते समय भी
मेरी आँखोके सामने नाचते रहेंगे | जब में एक समभामें सम्मिलित होने
जा रहा था, तो मेरी ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। मैंने देखा-एक गोरा
एक कुत्तेपर निशाना साध रहा दै । यह निशाना चूक गया; क्योकि कुत्ता
बहुत दूर था !
मैंने सोचा-बिहारमें इस गोरेके भाई-बिरादर ज्यादा भाग्यशील हैं;
क्योंकि उनके निशाने उन्हें बहुत ही नज़दीक मिल जाते हैं। आजकल
बिहारमें आदमी और कुत्तेमें बहुत ज्यादा फक नहीं रह गया है |” जो बात
बिहारके सम्बन्धमें कही गद है, वह सारे देशके सम्बन्धमं भी उतनी ही
स्च थी | |
यह शंसता किस सीमा तक वदी हुदै थी, इसका एक उदाहरण
उसी पटनेकी छातीपर अंगारोसे खुदा हुआ हे ।
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