माटी हो गई सोना | Mati Ho Gai Sona

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Mati Ho Gai Sona by कन्हैयालाल मिश्र -Kanhaiyalal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बयालीसके उ्वारकी उन लहरंमें १७ “तब ठीक है, मैंने पीठपर गोली नहीं खाई !” उसने कहा और हमेशाको आँखें मूँद लीं | इन शहीदोंकी देहसे जो गोलियाँ निकलीं, वे “दमदम बुलेट” थीं- अन्तर्यष्रीय विधानके अनुसार इन गोलियोंका प्रयेग युद्धोंम भी वर्जित है, पर अंग्रेजी शासनके लिए. उन दिनों न नियम थे, न पाबन्दियाँ । गोली मारना, जेखमें दूस देना, पीरना, घर फूँकना, गाँव उजाड़ देना और जाने क्या-क्या मामूली बात थी। उन्हींके एक आदमीके शब्दोंमें-“पुलिस और फौजको गाँवोंमें खुल- कर खेलनेके लिए छोड़ दिया गया था। नेशनल वारफंय्के लीडरकी हैसियतसे अपने, ज़िलेके गाँवोंमें घूमते समय मुके फौज और पुलिसके अत्याचारों, जनताकी सम्पत्तिकी ढूट-खसोट, गाँवोंकों जलाने, गिरफ्तारीका भय दिखाकर रुपये एंठने ओर कभी-कमी वसूीके लिए घोर यन्त्रणा देनेकी भी अनेक रिपोर्ट मिली हैं । पुलिस-द्वारा छूटी गई दूकानें तथा जलाये गये गाँवके गाँव मैंने अपनी आँखोंसे देखे ओर में मब्जूर करूँगा कि वे दृश्य मरते समय भी मेरी आँखोके सामने नाचते रहेंगे | जब में एक समभामें सम्मिलित होने जा रहा था, तो मेरी ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। मैंने देखा-एक गोरा एक कुत्तेपर निशाना साध रहा दै । यह निशाना चूक गया; क्योकि कुत्ता बहुत दूर था ! मैंने सोचा-बिहारमें इस गोरेके भाई-बिरादर ज्यादा भाग्यशील हैं; क्योंकि उनके निशाने उन्हें बहुत ही नज़दीक मिल जाते हैं। आजकल बिहारमें आदमी और कुत्तेमें बहुत ज्यादा फक नहीं रह गया है |” जो बात बिहारके सम्बन्धमें कही गद है, वह सारे देशके सम्बन्धमं भी उतनी ही स्च थी | | यह शंसता किस सीमा तक वदी हुदै थी, इसका एक उदाहरण उसी पटनेकी छातीपर अंगारोसे खुदा हुआ हे ।




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