कमल, तलवार और त्याग | Kalam talwar Aur Tyag

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kalam talwar Aur Tyag by प्रेमचंद - Premchand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

Read More About Premchand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
राणा प्रताप कातर न हुआ था कभी आँखें में - आँसू न आये थे । सरना मारना तो राजपूत का धर्स है। इसपर कोई राजपूत क्‍यों आँसू बहाये। पर आज इस बालिंका के बिलाप ने उसे विवश कर दिया । आज च्तुण सर के लिए उसकी ढ़ता के पाँव डिंग राये । कुछ च्ण के लिए मानव-म्रकृति ने वेयक्तिक विशेषत्व को पराजित कर दिया । सहदय व्यक्ति जितने दी शूर और साहसी होते उतने ही कोमलचित्त भी होते हैं। नेपोलियन बोनापाट ने हज़ारों आदमियों को मरते देखा था और हज़ारों को. अपने ही हाथों खाक पर सुला दिया था। पर एक भूखे दुवले कमजोर कुत्ते कों अपने मालिक की लाश के इधर-उधर - मँडलाते देख उसकी अआँखां से अश्रघारा उसडू पड़ी थी । राणा ने लड़की की गोद में ले लिया और वोला--धघिक्कार है मुमकों कि केवल नाम के राजत्व के लिए अपने प्यारे बच्चों को इतने क्‍्लेश दे रहा हूँ । उसी समय अकवर के पास पात्र भेजा कि झव कष्ट सहे नहीं जाते सेरी दशा पर कुछ दया कीजिए । अकबर के पास यह सैँदेसा पहुँचा तो मानो कोई अप्रत्या- सित वस्तु मिल गई । खुशी के मारे फूला न समाया। राणा का को सगवं दिखाने लगा । मगर दरवार में अगुणुज्ञ लोग बहुत कम होंगे जिन्होंने राणा की अधीनता के समाचार को के साथ सुना हो । राजे-महाराजे यद्यपि अकवर की दरवारदारी करते थे पर स्वजाति के अभिमान के नाते सबके हृदय में-राणा के लिए सम्मान का भाव था । उनको इस वात का गये था कि यद्यपि दस पराधीन दो गये हे पर हसारा एक साइ अभी तक स्वाधीन राजत्व का डंका. बजा रहददा है। और क्या कि कभी-कभी अपने दिलों में इतने सहज में वश्यता स्वीकार कर लेने पर. लजा भी अनुभव करते. हों.1 इनमें बीकानेर नरेश.का छोटा भाडे प्रथ्वीसिंह भी था जा बड़ा. तलवार का धनी और शूर- चीर था । राणा के प्रति उसके हृदय में... सची श्रद्धा .उत्पल.हो गई




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now