ऋतम्भरा | Ritambra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी की उत्पत्ति १५
बोलियों पर भी पढ़ा | भाषा-तत््व के विचार से ग्रियसन आदि पंडितों
ने राजस्थान, गुजरात, पंजाब श्रौर श्रवध की प्राकृत बोलियों पर
शौरसेनी का विशेष प्रभाव स्वीकार किया है । राजस्थानी, गुजराती,.
पंजाबी और श्रवधी के विकास में शौरसेनी ने बहुत काम किया ।
सिफ प्रादेशिक प्राकृतों से इन बोलियों की उपत्ति नहीं हुई, ऐसा
विचार होता है ।
ईसवी प्रथम सदश्च वर्षों के बीच में प्राचीन भारतवष में एक
नवीन राष्ट्र या साहित्यिक भाषा का उद्भव हुआ । यह श्रपभ्रंश भाषा
थी, जो शोरसेनी प्राकृत की एक शैली थी। अ्रपश्रंश भाषा--यह
शोौरसेनी अपभ्रंश--पंजाब से बंगाल तक और नेपाल से महाराष्ट्र
तक साधारण शिष्ट भाषा और साहित्यिक भाषा बनी। लगभग
ईसवी सन् 2०० से १३ या १४ सो तक शौरसेनी अ्रपश्र श का प्रचार-
काल था। गुजरात और राजपूताने के जैनों द्वारा इसमें एक बड़ा
साहित्य बना । बंगाल के प्राचीन बौद्ध सिद्वाचायंगण इसमें पद रचते
ये, जिनका श्रन्त मे भोटमाषा (तिब्बती) में उल्था हुआ था | इसके
अलावा, भारत में इस अपभ्रश में एक विराट लोकसाहित्य बना,
जिसके हूटे-फूटे पद ओर गीत श्रादि हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण श्रौर
प्राकृत-पिंगल श्रौर छन्द-गरन्थ मेँ पाये जाते ह । शोरसेनी श्रपभ्र श की
प्रतिष्ठा के कई कारण ये | इसवी प्रथम सहखक की श्रन्तिम सदियों के
राजपूत राजाशों की सभा में यह भाषा बोली जाती थी, क्योंकि यह
भाषा उसी समय मध्यदेश श्रोर उसके संलम्म प्रान्तों में--आधुनिक
पछाँद में--साधा ऱतः घरेलू भाषा-स्वरूप प्रयुक्त होती थी | द्वितीय
कारण यह है कि, इस समय गोरखपन्थी आदि श्रनेक हिन्दु सम्प्रदाय
के गुरु लोग, जो पंजाब और दिन्दुस्तान से नवजाग्रत दिन्दू-धमं की
वाणी लेकर भारत के श्रन्य प्रदेश में गये थे, वे भी इसी भाषा को
बोलते थे, इसमें पद श्रादि बनाते थे, और इसी में उपदेश देते थे ।
उसी समय उत्तर-भारत के कनोजिया श्रादि ब्राह्मण बंगाल अ्रदि प्रदेश
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