ऋतम्भरा | Ritambra

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Ritambra  by सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या - Suniti Kumar Chaturjya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी की उत्पत्ति १५ बोलियों पर भी पढ़ा | भाषा-तत््व के विचार से ग्रियसन आदि पंडितों ने राजस्थान, गुजरात, पंजाब श्रौर श्रवध की प्राकृत बोलियों पर शौरसेनी का विशेष प्रभाव स्वीकार किया है । राजस्थानी, गुजराती,. पंजाबी और श्रवधी के विकास में शौरसेनी ने बहुत काम किया । सिफ प्रादेशिक प्राकृतों से इन बोलियों की उपत्ति नहीं हुई, ऐसा विचार होता है । ईसवी प्रथम सदश्च वर्षों के बीच में प्राचीन भारतवष में एक नवीन राष्ट्र या साहित्यिक भाषा का उद्भव हुआ । यह श्रपभ्रंश भाषा थी, जो शोरसेनी प्राकृत की एक शैली थी। अ्रपश्रंश भाषा--यह शोौरसेनी अपभ्रंश--पंजाब से बंगाल तक और नेपाल से महाराष्ट्र तक साधारण शिष्ट भाषा और साहित्यिक भाषा बनी। लगभग ईसवी सन्‌ 2०० से १३ या १४ सो तक शौरसेनी अ्रपश्र श का प्रचार- काल था। गुजरात और राजपूताने के जैनों द्वारा इसमें एक बड़ा साहित्य बना । बंगाल के प्राचीन बौद्ध सिद्वाचायंगण इसमें पद रचते ये, जिनका श्रन्त मे भोटमाषा (तिब्बती) में उल्था हुआ था | इसके अलावा, भारत में इस अपभ्रश में एक विराट लोकसाहित्य बना, जिसके हूटे-फूटे पद ओर गीत श्रादि हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण श्रौर प्राकृत-पिंगल श्रौर छन्द-गरन्थ मेँ पाये जाते ह । शोरसेनी श्रपभ्र श की प्रतिष्ठा के कई कारण ये | इसवी प्रथम सहखक की श्रन्तिम सदियों के राजपूत राजाशों की सभा में यह भाषा बोली जाती थी, क्योंकि यह भाषा उसी समय मध्यदेश श्रोर उसके संलम्म प्रान्तों में--आधुनिक पछाँद में--साधा ऱतः घरेलू भाषा-स्वरूप प्रयुक्त होती थी | द्वितीय कारण यह है कि, इस समय गोरखपन्थी आदि श्रनेक हिन्दु सम्प्रदाय के गुरु लोग, जो पंजाब और दिन्दुस्तान से नवजाग्रत दिन्दू-धमं की वाणी लेकर भारत के श्रन्य प्रदेश में गये थे, वे भी इसी भाषा को बोलते थे, इसमें पद श्रादि बनाते थे, और इसी में उपदेश देते थे । उसी समय उत्तर-भारत के कनोजिया श्रादि ब्राह्मण बंगाल अ्रदि प्रदेश




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