आदर्श योगी | Aadarsh Yogi

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Aadarsh Yogi by रघुनाथ शुक्ल - Raghunath Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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প্র, পে है । उनको दाशेनिक विचार धाराएँ भो प्रथक प्रथक्‌ देखी जाती हैं । साधन मार्गों में यह वेचित्य भारतीय आध्यात्मिक संरकति: का एक विशेष गोरव है। मागे बहुत है, परन्तु परम लक्ष्य एकद्दी है। साधन पद्धतियों के विचित्र रूप हैं, परन्तु चरम सिद्धि का स्वरूप एक ही है। सभी साधक अपनी अपनी साम्प्रदायिक घारा का अनुबतेन करते हुये ऐकान्तिक निष्ठा और एकाग्रता के साथ साधन करते करते अन्त में--शर्थात्‌ चरम सिद्धि की अवस्था में-एकही दिव्यानुभति की प्राप्ति करते हैं, एकही अनिवेचनीय परम कल्याणमय परमानन्द्मय प्रमसत्यमय श्रखण्ड चत्न्यमय सबतत्वातोत पररमतन्त्व मे सुप्रतिष्ठित होते दै। साधना मे साम्प्रदायिकता दहै, परमसिद्धिमें कोई साम्प्रदायिकता नहीं है । सभी सन्त महापुरुष चरमतत्वा- नुभति की अवस्था में साम्प्रदायिकता के ऊण्वे एक अभेद भूमि पर विहार करते हैं ओर संसार के सभी श्रेणियों के नर-नारियों के सामने अभेद का ही आदर्श दिखलाते हैं। सत्संग के प्रभाव से मनुष्यत्व की साथकता महापुरुषों की जीवनधारा का दशन करके श्रौर उनकी उपदेश वाणी का श्रवण करक साधारण जनता के भन में भी ऐसा सुददृद॒ संस्कार पेदा होता है कि, भोग से त्याग श्रेष्ठ है, काम से निष्कामता श्रेष्ठ है, क्रोध से प्रेम श्रेष्ठ है, विरोध से मिलन श्रेष्ठ हे, हिंसा से अहिंसा श्रेष्ठ है, ऐहिक अभ्युदय से आत्मिक कल्याण श्रेष्ठ है, जड़ पदार्थो' की अपेज्ञा चित्स्वरूप आत्मा श्रेष्ठ है, विश्व प्रपत्ख की अपेक्षा विश्वप्रपंच का मूलतक्त्व परमात्मा परमेश्बर श्रेष्ठ है। इसी प्रकार यह भी दिखलाई पड़ने लगता है कि, विश्वप्रपंच में सब कुछ अनित्य है, अपनी देह भी अनित्य है, सब सम्बन्ध भी अनित्य है, एक मात्र परमात्मा ही निस्य दै, परमात्मा के साथ सम्बन्ध हो नित्य सम्बन्ध है, परमात्मा का ध्यान चिन्तन आराधना ही मानव जीवन का मुख्य कम है, सांसारिक सभी वस्तुओं के प्रति आसक्ति छोड कर आध्यात्मिक साधन भजन में देद्देन्द्रियमन बुद्धि को लगा देना ही मनुष्य जीवन




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