कल्याण कल्पतरु स्तोत्र | Kalyan Kalptaru Strot

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kalyan Kalptaru Strot  by ज्ञानमती जी - Gyanmati Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्ञानमती जी - Gyanmati Ji

Add Infomation AboutGyanmati Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ब्राह्मी को प्रतिमुति-गणिनी आर्थिका ज्ञानमतोजी लेखिका--आध्थिका चन्दनामती जम्बूद्वीप रचना की पावन प्रेरिका परम यूज्या गणिनी आयिकारत्न श्री ज्ञानमतो माताजी जिनका परिचय लिखने का प्रयास मैं कर रही हैं उन्हे एक कुशल शिल्पी कहूँ या कुमारिकाओ की पथप्रदर्शिका, आशु- कवयित्री कहूँ या विदुषी लेखिका, सरस्वती की चल प्रतिमा कहूँ या पूणिमा की चाँदनी । सारे ही विशेषण उनके चतुरक्षरी “शञानमती” नाम मे समाहित हो जाते हैं । उत्तर प्रदेश के बाराबकों जिले में छोटे से कस्बे टिकैतनगर के श्रेष्ठी छोटेलालजी क्‍या कभी सोच भी सके होगे कि मेरी सुकुमार मेना सारे विश्व मे मेरा और भेरे कस्बे का नाम रोशन करेगी ? उन्होने सोचा हो या नही, माता मोहिनी ने तो मैना की बाल दुलंभ ज्ञानवर्धक धार्ताओं से अनुमानित कर लिया था कि यह एक गृहिणी के रूप में माँ न बंनकर जगन्माता बनेगी । वि० स० १६४१ (२२ अक्टूबर, सन्‌ १६३४) की शरद्‌-पूणिमा ने तो मैना की जन्म-कुडली ही खोलकर रख दी थी कि इसकी ज्ञान चँदनी से समस्त ससार को शीतलता प्राप्त होने व।ली है। जीवन के १७ वषं पूणे हए थे, बैराग्य के बढते कदमो को सबल मिला आचार्य श्री देशभूषण महाराज का, अतः वि० स० २००८ (सन्‌ १६५२) की शरद्‌ पूणिमा को सप्तम प्रतिमा रूप ब्रह्मचयं व्रत ग्रहण किया । पुन वि०स० २००६ चैत्र कु० एकम (सन्‌ १६५३) मे महावीर जी अतिशय क्षेत्र पर क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर “वीरमती” नाम प्राप्त किया। अनन्तर आचायंश्री शातिसागर महाराज के दर्शन करके उनकी सत्लेखना के पश्चात्‌ वि० स० २०१३, वंशाख क० २ (सन्‌ १६५६) को माधोराजपुरा (राज०) में आचार्यश्री के प्रथम पद्ठाधीश आचाये श्री बोरसागर महाराज से आविका दीक्षा घारण कर ज्ञानमती नाम से अलकृत हुई । सधर्षो की विजेत्रौ एव दृढता कौ मूति स्वरूप आपका यह्‌ चार लाइनों का परिचय ही आपकी जीवन्त ज्योति को प्रज्वलित कर रहा है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now