कुरल-काव्य | Kural Kavya

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Kural Kavya  by गोविन्द्रराय शास्त्री -Govindrarai Shastriतिरुक्कुवर [ श्री एलाचार्य ] - Thirukkovar [Shri Ellacharya]

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तिरुक्कुवर [ श्री एलाचार्य ] - Thirukkovar [Shri Ellacharya]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुरल काव्य १५ परिच्छेद ११ .. कृतज्नता 9. आभारी बनाने की इच्छा से रहित होकर जो दया दिखाई जाती है, स्वर्ग और पृथ्वी दोनों मिलकर भी उसका बदला नहीं चुका सकते। २. अवसर पर जो उपकार किया जाता है, वह देखने में छोटा भले ही हो; परन्तु जगत्‌ मेँ सबसे भारी है। ३. प्रत्युपकार मिलने की चाह के बिना जो भलाई की जाती ह, वह सागर से भी अधिक बड़ी है। ४. किसी से प्राप्त किया हुआ लाभ न हो, राई की तरह छोटा ही क्‍यों न हो किन्तु समझदार आदमी की दृष्टि में वह ताड़वृक्ष के बराबर है। ५. कृतज्ञता की सीमा, किये हुए उपकार पर अवलम्बित नहीं है, उसका मूल्य उपकृत व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर है। ६. महात्माओं की मित्रता की अवहेलना मत करो और उन लोगों का त्याग मत करो, जिन्होंने संकट के समय तुम्हारी सहायता की है। ७. जो किसी को कष्ट से उबारता है, जन्म-जन्मान्तर तक उसका नाम कृतज्ञता के साथ लिया जायेगा । ८. उपकार को भूल जाना नीचता है; लेकिन यदि कोई भलाई के बदले बुराई करे, तो उसको तुरन्त ही भुला देना बड़प्पन का चिह्न है। €. हानि पहुँचाने वाले का यदि कोई उपकार स्मृत हो आता है, तो महा भयंकर व्यथा पहुँचाने वाली भी चोट उसी क्षण विस्मृत हो जाती है। १०. अन्य सब दोषों से कलंकित मनुष्यों का तो उद्धार हो सकता है; किन्तु अभागे अकृतज्ञ का कभी उद्धार न होगा।




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