श्री श्रीचैतन्य चरितावली प्रथम खण्ड | Shree Shreechaitanya Charitavali Khand 1

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Shree Shreechaitanya Charitavali Khand 1  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना सा गये | उनक्रे आनते सम्पर् आश्रम आनन्दमय बन गयां । निरन्तर भक्ति आगमनसे आश्रमे चदट-पदक बनी रद्ती टै । जव भगवान्की कमा होती ह, तव एक साय दी हेती हे । महात्मा श्रीदरिष्टस-श्ीचैतन्यजीका नाम चदुत दिनेखि मुन रद! था+ २२.२३ वर्धके छोटी अवस्थार्मे दी उन्होंने वेदान्त-झास्रमे पूर्णता प्राप्त कर ली है; वे एक चदरके अतिरिक्त कमण्डल भी नहीं रखते, बड़े-बड़े विद्वान्‌ पण्डित उनके पास येदान्तके ऊँचे-ऊँचे ग्रन्थ पढ़मे आते हैँ | मैं उनके दर्शनको ऋषिकेश गया था) किन्तु मेरे हुर्माग्यसे वे उसी दिन हरिद्वार चले आये थे; इसलिये उनके दर्शनोसे तब बश्चित ही रहा | सहसा एक दिन वे स्वतः ही यहाँ आ गये और मेरी प्रार्थनापर कुछ काल उन्होने यहाँ रहना भी स्वीकार कर टिया हे । समके आप नियमितरूपमे “चैततन्थ-चरितावलछी? की कथा सुनते हैँ और दिनमें श्रीमद्धागवतकी भी । अबतक मैं अपनेको ब्रिल्कुल भगवत्कृपसे हीन समझता था, किन्तु इन महापुरुषीके दर्शनोंसे और इनकी अह्दैतुकी कृपाका स्मरण करके सोचता हूँ) तुझे चाहे अनुभव न हो) किन्तु तेरे ऊपर भगवानकी थोड़ी-बहुत कृपा अवश्य है। कारण (बिनु हरिकृपा मिदि नहिं संता । दस पदपर दी विश्वास करके अनुमान करता हूँ, यैसे अपने चित्तकी चदिरुखी दृत्तिका स्मरण करके तो अवतक यही पता लगता है; कि मैं भगवत्कृपासे अमी बहुत दूर हूँ । मार्गशीर्षकी पूर्णिमाको इस ग्रन्थका छिखना आरम्म किया था) , बीचर्मे शारीरिक बड़े-बड़े ब्रिक्ष हुए। उस अभ्चिकर प्रसद्चका वर्णन करके में पाठकोंका बहुमूल्य समय बरबाद नहीं करना चाहता? किन्नु इतना बताये देता हूँ कि पूर्व जन्मेंकि पापोके परिणामस्वरूप या प्रारब्धके मोगेकि कारण यह दरीर बहुत ही रोगमय प्रास्त हुआ है | एक दिन दोनों खोखली' डादेमें बड़ी भारी बेदना हो रह्दी थी। उन्हें उखड़वानेके ल्यि डाक्टर साइबकों बुलाया था पैरोंकी बड़ी-बड़ी बिवाइयोंमें सूखा दर्द हो'रहा था। इससे




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