रामचन्द्रिका सटीक | Ramchandrika Satik

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Ramchandrika Satik by केशवदास - Keshavdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रापचन्द्रिका सटीक । १३ |. ग्राम बाहर जहां तहां महावत दायिनकों फेरतहैं तिनका वन है सुभा- | | वोक़ि है झथवा स्थानपर बैंधे हैं वारण हाथी तिनके दल चमूको अकेलेइ | दलिडारत हैं यासों झतिवसी जानो अथवा बार कद्दे बेर नहीं लागति | । शत्रदल को दलिडारतई भुरक लगाये चंदन राोरो २८ दिफ्पाल इद्रादि | | उपहार भट २६ कल अव्यक्क मधुर २० ॥। |. फूलिफूलि तरु फूल बढ़ावत । मोदत महामोद उपजा- | | वत ॥ उड़त पराग न चित्त उठावत । भैंवर अमत नहिं जीव | | अमावत ३१ पादाकुलकद ॥ शुभसर शोभे । सानेमन | | लोगे ॥ सरसिज फूले । लि रसभूले ॥ जलचर डोले। बहु | | खग बोलें ॥ बरणि न जाहीं । उर अझरुफाहीं ३९ चतुष्पदी | छंद ॥ देखी वनवारी चंचलभारी तदपि तपोधन मानी । | | अतितपमय लेखी ग्रहथित पेखी जगत दिगंबर जानी ॥ | जग यदपि.दिगंबर पुष्पवती नर निरखि निरंखि मन मोहै। | पनि प्रष्पचतीतन अति झतिपावन गर्भसहित सभ सोहे ३३ | | पुनि गर्भसयोगी रतिरसभोगी जगजनलीन कहावे । गुणि | | जग जललीना नगरप्रबीना अतिपतिके चित भावे ॥ अति | | पतिहि रमांवै चित्तश्रमावे सौतिन प्रेम बढ़ावे । अब यों दिन | | रातिन अद्भतभांतिन कविकुल कीरति गावे ३४ ॥ |. मोदत कहे सगघ को पसारत ३१ । ३२ दछंद को झन्वय एक चन- | बारी कहे उपवन री श्लेष ते वनकी बारी कुमारी कुमारी पक्ष विरोध हे | चाटिका पश्न शद्धाय हद वबराधाभास अलकारद चचलस्वभाव चचल झा | | वाययोगसों चंचल हैं पचजा भारी कहे गरू है देह जाकी आओ दीथे दक्ष- | युक्त तपोधन तपस्त्रिनी झ तपंस्वरी सम शीत घाम तोय दुख सदति है. | | गृह घर झौर परिखा छारदीवालीति दिगंवर वख रदित दुदो पक्ष में | परष्पवती रजोधामिणा था प्रफाल्लल तन आते कह स्थूलकाय शा बहुत | भूमि में विस्तार दूं जाकों अतिपावन पात्र आते दुधो पश्षम गभे साहत | गुर्विणी आो फल गभे सदित यासों सदा फलोत्पत्ति जनायो रतिरस |




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