प्रज्ञा (प्रथमो भाग) | Pragya Bhag-1

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Book Image : प्रज्ञा (प्रथमो भाग) - Pragya Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8484 “(0 ৮ = ८५ শু লস নিি)৬-0) 10 0১১ এ/৭1 ५१ ५५ ` गाँधी जी का जन्तर तुम्हें एक जन्तर देता हूं । जब भी तुम्हें सन्देह ही या तुम्हारा अहम तुम पर हानी हीने लगे, तो यह कप्तीटी आजमाओं : जो राबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शकल धाद फरो और अपने दिल से पूछी कि जो कदम उठाने का तुम विचार फर्‌ रह हो, षह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा । क्‍या उत्तसे उसे कुछ लाभ पहुँचेगा ? क्या उससे बह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा ? यात्ति क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्व॒राज्य मिल सकेगा जिनके पेंट भूखे है और आत्या अतुप्त है ? तव तुष देखोंगे कि तुम्हारा सन्वेह भिटट रहा ह ओर अहम्‌ समाप्त होता जा रहा है| जाओ के ৪৪ 4 ८ <, ~ ध




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