अथर्ववेद (तृतीय भाग) | Atharvved (Bhaag-3)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१९) उलूकयातु शुशुद्कयातुं जादे श्वयातुसुत फोकयातुं, सुपणयातुं उत ग्र॒भ्नयातुं दषदेव प्र सुण रफ्ष इन्द्र ( ८।४।२२ )-- कामी, कोधी, लोमी, मोक, घमं, मध्वरर्ि पश्यरके मार, हे इन्द | हमारी रक्षा कर | दभ्र अहि पुमांसं उत लिय मायया हाहाक्ानां (८।४।२४ )~- दे हस्त | तू पएरषश्लो या ल्लोको पराजित कर जो कपटका भाचरण करता है । विघ्रीवाखे मूरदेवा ऋदम्तु- मुके ठपासक गदन- रहित होकर घूम । भयं त्रतिखरो प्रणिर्वीपि वीराय बध्यत, वीयवान्‌ सपत्नहा शुरथोर :परिपाणः सुमडुल।ः (<1५।१) -- भह प्रविह्तर मणि वीयेवान्‌, वोर, शश्रुका नाष करनेबाका, संरक्षक, मंगक करनेवाका হুহ है वह बीरके बारीरपर थांघा जाता है । অথ मणिः सपत्नदा खुवीरः सहसख्वान धवाजी सह- मान उद्रः प्रत्यक्‌ छत्या दुृषयश्नेति वीरः € 5৬২ )-- यह मणि शर््रुनाक्षक, डत्तम वीर, हानुका पर/भव करनेवाला, बलवान , उप्र वीर हिंसक प्रथोगोंका नाश करता हुभा भाता है । अनेन ( इन्द्रो /5जयत्‌ प्रदिश्चश्चतखः ( ८।५।३ )- इस मणिकरे प्रभावसे इन्द्रने चारों दिशाभोंमें विजय प्राप्त किया । अनेनेन्द्री मणिना शुजमहन्‌ , अनेनासुरान्‌ पराभा- वयन्‌ मनीषी ( <।५।३ )-- इस मणिके प्रभावसे हस्द्रने बृत्रको सारा लोर इसके प्रभावसे बुद्धिमान्‌ हस्तने भसुरोका पराभव किया | म्यं स्ाक्त्यो मणिः प्रतीवतंः प्रतिसरः, आजखान्‌ विमृघो वकी सोऽस्मान्‌ पातु स्वेतः (८।५,४) -- अह प्रगति करनेवाक्ना मणि शश्रुपर भाकमण करनेवारा बकबान्‌ वढामें रखनेवाका धूर हे वह सब भोरसे हमारा रक्षण करे | । ख।कश्येन मणिन ऋविणेव मनीषिणा, अजेव सर्वाः पृतना थि सृथोी हन्मि रक्षतः (८५८ )-- शानी ऋषिके समान इस खाक्त्य भणिते में सब क्षत्र सेनाभोंको जीतता हूं भोर युद्धमें राक्षतोंका गाश्ष करता हूँ । [ अथवंदेद्‌के ७ से १० तक मद्ये मणि बमं बध्नन्तु देवाः ( ८।५।१० }-- इश अणिको सब देव कवच करके बारं। खपत्नकशेनों यो बिभर्तीम লাজিমূ € 414৭৭ )-. जो इस मणिको धारण करता है यह হ্ানুকা লাগা करता है । सर्वा दिशो वि राजति यो विभतीम माणिम्‌ (<५।१३) --जो इस मणिकों धारण करता है बह सब दिक्षा. भोति विराजता है । य आम मांसमद्न्ति पौरुषेय चये क्रविः, गर्भान्‌ खादन्ति कंद्ावाः तानितो नाशयामसि ( ८।६।२३ )- जो कचा मघ खाते हैं, ओ मनुष्यका मांप खाते हैं, जो बाकोंबाके गर्भाको खाते हैं डनको यहांसे हटाता हूं । वैयान्नो मणिवीदधां त्रायमाणो5मिशलस्तिपाः, अमीवाः सर्वा रक्ताद्यप हन्त्वाधे दुरमस्मत्‌ ( ८।७।१४ ) ~ ভযাসষ্ট समान बह शूर मणि জীখ- विर्थोते बनाया, संरक्षक, विनाशे बचाता है, यह सब रोगों णोर राक्षत्ोंकों दमसे दूर के जाइर डनड। नाश करे । अथो कृणोमि भेषजं यथात्तच्छतह।यनः (८।७।२३ ) में यह भोषथ बनाता हुं जिक्के सतेवगसे यह सो वर्ष जीवित रहेगा । उत्या हाथ पत्चशलादथो वृशशलादुत, अथो यमस्य पढड्वीशात्‌ विश्वस्माद्‌ देवकिल्विषात्‌ ( ८।७।२८ )- पांच या दस रोगोंसे, यमपाश्षसे, सब देवोंके सम्बन्धमें क्रिये पापोंसे तुझे ऊपर डठाता हूं । यथा इनाम सेनां अपित्राणां सद॒स्तश। ( 4।4।॥१ )- शधात्रुके सकडों सेनिकोंको हम मारेगे | अमिन्रा हत्खा दृधतां मयम्‌ ( <'८:२ )-- शज्न ह इयमें भव धारण करें । तेनामियाय दस्यूनां शाकः सेनापमपावपत्‌ ( ८।८।५) इन्र शच्चङी सेनाको पकड़कर मगावा । शचि जालं शतः शक्रस्य वाजिनीवतः, तेन शचू- नमि सर्वान्‌ न्‍्यब्ज, यथा न मुख्याते कतमश्य- नेषाम्‌ ( ८।८।९ )- बढे सेन।वकि समय बीशका वडा आक था, जिघसे वह सब दात्रुभोंको बेरता था, जिसमेंसे कोई धत्रु छूटता नहीं था ।




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