अथर्ववेद (तृतीय भाग) | Atharvved (Bhaag-3)
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
602
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१९)
उलूकयातु शुशुद्कयातुं जादे श्वयातुसुत फोकयातुं,
सुपणयातुं उत ग्र॒भ्नयातुं दषदेव प्र सुण रफ्ष
इन्द्र ( ८।४।२२ )-- कामी, कोधी, लोमी, मोक,
घमं, मध्वरर्ि पश्यरके मार, हे इन्द | हमारी
रक्षा कर |
दभ्र अहि पुमांसं उत लिय मायया हाहाक्ानां
(८।४।२४ )~- दे हस्त | तू पएरषश्लो या ल्लोको
पराजित कर जो कपटका भाचरण करता है ।
विघ्रीवाखे मूरदेवा ऋदम्तु- मुके ठपासक गदन-
रहित होकर घूम ।
भयं त्रतिखरो प्रणिर्वीपि वीराय बध्यत, वीयवान्
सपत्नहा शुरथोर :परिपाणः सुमडुल।ः (<1५।१)
-- भह प्रविह्तर मणि वीयेवान्, वोर, शश्रुका नाष
करनेबाका, संरक्षक, मंगक करनेवाका হুহ है वह
बीरके बारीरपर थांघा जाता है ।
অথ मणिः सपत्नदा खुवीरः सहसख्वान धवाजी सह-
मान उद्रः प्रत्यक् छत्या दुृषयश्नेति वीरः
€ 5৬২ )-- यह मणि शर््रुनाक्षक, डत्तम वीर,
हानुका पर/भव करनेवाला, बलवान , उप्र वीर हिंसक
प्रथोगोंका नाश करता हुभा भाता है ।
अनेन ( इन्द्रो /5जयत् प्रदिश्चश्चतखः ( ८।५।३ )-
इस मणिकरे प्रभावसे इन्द्रने चारों दिशाभोंमें विजय
प्राप्त किया ।
अनेनेन्द्री मणिना शुजमहन् , अनेनासुरान् पराभा-
वयन् मनीषी ( <।५।३ )-- इस मणिके प्रभावसे
हस्द्रने बृत्रको सारा लोर इसके प्रभावसे बुद्धिमान्
हस्तने भसुरोका पराभव किया |
म्यं स्ाक्त्यो मणिः प्रतीवतंः प्रतिसरः, आजखान्
विमृघो वकी सोऽस्मान् पातु स्वेतः (८।५,४)
-- अह प्रगति करनेवाक्ना मणि शश्रुपर भाकमण
करनेवारा बकबान् वढामें रखनेवाका धूर हे वह सब
भोरसे हमारा रक्षण करे | ।
ख।कश्येन मणिन ऋविणेव मनीषिणा, अजेव सर्वाः
पृतना थि सृथोी हन्मि रक्षतः (८५८ )--
शानी ऋषिके समान इस खाक्त्य भणिते में सब क्षत्र
सेनाभोंको जीतता हूं भोर युद्धमें राक्षतोंका गाश्ष
करता हूँ ।
[ अथवंदेद्के ७ से १० तक
मद्ये मणि बमं बध्नन्तु देवाः ( ८।५।१० }-- इश
अणिको सब देव कवच करके बारं।
खपत्नकशेनों यो बिभर्तीम লাজিমূ € 414৭৭ )-.
जो इस मणिको धारण करता है यह হ্ানুকা লাগা
करता है ।
सर्वा दिशो वि राजति यो विभतीम माणिम् (<५।१३)
--जो इस मणिकों धारण करता है बह सब दिक्षा.
भोति विराजता है ।
य आम मांसमद्न्ति पौरुषेय चये क्रविः, गर्भान्
खादन्ति कंद्ावाः तानितो नाशयामसि
( ८।६।२३ )- जो कचा मघ खाते हैं, ओ
मनुष्यका मांप खाते हैं, जो बाकोंबाके गर्भाको खाते
हैं डनको यहांसे हटाता हूं ।
वैयान्नो मणिवीदधां त्रायमाणो5मिशलस्तिपाः,
अमीवाः सर्वा रक्ताद्यप हन्त्वाधे दुरमस्मत्
( ८।७।१४ ) ~ ভযাসষ্ট समान बह शूर मणि জীখ-
विर्थोते बनाया, संरक्षक, विनाशे बचाता है, यह
सब रोगों णोर राक्षत्ोंकों दमसे दूर के जाइर डनड।
नाश करे ।
अथो कृणोमि भेषजं यथात्तच्छतह।यनः (८।७।२३ )
में यह भोषथ बनाता हुं जिक्के सतेवगसे यह सो
वर्ष जीवित रहेगा ।
उत्या हाथ पत्चशलादथो वृशशलादुत, अथो
यमस्य पढड्वीशात् विश्वस्माद् देवकिल्विषात्
( ८।७।२८ )- पांच या दस रोगोंसे, यमपाश्षसे,
सब देवोंके सम्बन्धमें क्रिये पापोंसे तुझे ऊपर
डठाता हूं ।
यथा इनाम सेनां अपित्राणां सद॒स्तश। ( 4।4।॥१ )-
शधात्रुके सकडों सेनिकोंको हम मारेगे |
अमिन्रा हत्खा दृधतां मयम् ( <'८:२ )-- शज्न ह इयमें
भव धारण करें ।
तेनामियाय दस्यूनां शाकः सेनापमपावपत् ( ८।८।५)
इन्र शच्चङी सेनाको पकड़कर मगावा ।
शचि जालं शतः शक्रस्य वाजिनीवतः, तेन शचू-
नमि सर्वान् न््यब्ज, यथा न मुख्याते कतमश्य-
नेषाम् ( ८।८।९ )- बढे सेन।वकि समय बीशका
वडा आक था, जिघसे वह सब दात्रुभोंको बेरता था,
जिसमेंसे कोई धत्रु छूटता नहीं था ।
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