बैगन का पौधा | Baigan Ka Paudha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“१६ बेगन का पोधा
वह चाहे तो मै दफ्तर का ताला खुला छोड़ द्। लेकिन “नहीं नहीं बाबूजी
मेरे पास काफ़ी कपड़े हैं? उसके यह कहने पर में ताला लगा अपने स्निग्ध,
गम छोटे से सोने के कमरे मे चला गया | बिस्तर बिछा था, কিছ लिहाफ़
पर मेंने कम्बल ओर डाल लिया ओर कपड़े बदलकर मे लेट गया। बिस्तर
हिम की भाँति ठडा था। मैने पाँव सिकोड़ लिये ओर फिर उन्हें धीरे-
धीरे फैलाया | कई तरह के विचार मस्तिष्क में घूमने लगे--तारतम्य-हीन,
बे-रबव्त और असंयत--पर लिहाफ़ की गर्मी से ऑखे भारी हो गई ओर
फिर बन्द हो गई ।
सोते सोते, कभी माहीराम, कभी उस वृद्ध ओर कभी उनके स्वामी
ठेकेदार की शकले मेरे सामने आने लगीं ।
मैने देखा कि माहीराम ने चोर पकड़ लिया है ओर वह उसे पीटठता
पीटता पास के गाँव 'वैरोके? तक ले गया है ओर सब गाँववालों को एकत्र
करके उसने एलान किया है कि जो हमारी सब्ज़ी चुरायेगा, उसको ऐसा
ही दड मिलेगा | इतना कहकर वह फिर चोर को पीटता है| चोर दयनीय
निगाहो से उसकी ओर देखता है ओर में हैरान होता हूँ कि वह ठेकेदार
के सिवा कोई नहीं--वही घुटा हुआ सिर, वही फूले गाल और वही
चौरस नाक |
मेरी आँख खुल गई | देखा, पाँव से रज़ाई उतर गई थी। अधिक
खा जाने के कारण छाती कुछ भारी ओर गला सूखा जा रहा था |
सिरहाने रखे हुए लोटे से पानी पीकर, अच्छी तरह से लिहाफ़ लेकर,
दोनो ओर से उसे पाँवों केनीचे दबाकर में फिर लेटगया | बाहर हवा मकान
कीदीवारोसेख्छरे मार स्टीथी ओर पेड उसके वेग का भरसक
सुक्राबिला करते हुए जोश की शिदत से चिधाङते थे--शॉँ---शाँ--शाॉ !
ओर दूर बादल की गजं श्रोर बिजली कौ कंड्क भी सुनाई देती थी।
किन्तु गर्म होकर मेरा शरीर फिर शिथित्ल हो गया | भ्मै सो गया |
इस बार में देखता हूँ कि ज़ोर की वर्षा हो रही है। तेज़ हवा चल
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