न्याय वैशेषिक दर्शन की सम्मिश्रित प्रक्रिया में रचित प्रमुख ग्रन्थो का समीक्षात्मक अध्ययन | Nyay Vashisik Darshan Ki Sammisrit Prakriya Me Rachit Pramukh Ka Samikshatmak Adhyayn

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Book Image : न्याय वैशेषिक दर्शन की सम्मिश्रित प्रक्रिया में रचित प्रमुख ग्रन्थो का समीक्षात्मक अध्ययन  - Nyay Vashisik Darshan Ki Sammisrit Prakriya Me Rachit Pramukh Ka Samikshatmak Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकरण! में जा कि द्रव्य का भेद है, उसमें क्या गया है। इस प्रकार के ग्रन्थाँ में 'अन्नम्भटूट कृत तर्कसंग्रह विश्वनाथ पंचानन कृत कारिकाकली, लौगक्षिभास्कर कृत तकंकोमृदी तथा जगदीश तर्कालंकार कृत त्काम्रत के नाम लियि जा सकते हे। त्याय-वैशेषिक के सम्मिश्रित प्रक्रिया में रचित प्रमुख ग्रन्था एवं उनके ब्रन्थकारों का परिचय - क ना भ शो पः च धि भत পিপি सि छि भि कि भ छि भि आः कमि जः पि चः भोज আচ আজ পাচ এজ এ পাচ লা বা লা कि चि ७5 কত এ এ का ঝি | আগা পদ আম খর ष र म ष ष ष গালা শা হয अब न्याय - वैशषिक दशन की समि्मिश्रित प्रक्रिया में रचित प्रमुख ग्रन्था एवं उनके ग्रन्थकारों के विषय मे संक्षिप्त विवेचन किया जा रहा है :- परदराज : वरदराज की 'तार्किकरक्षा' का न्यायशास्त्रीय प्रकरण ग्रन्थों में अपना विशिष्ट प्यान हे। वरदराज का जन्म संभवत: आंध्र में हुआ था। इन्हाँने 'तार्किकरक्षा' पर 'सारसंग्रह' नामक एक टीका भी लिखी थी। 1तार्किकरक्षा मेँ विष्णुस्वामी के शिष्य ज्ञानपूर्ण ने 'लघुदीपिका' तथा मल्लिनाथ ने निष्कण्टक' नामक टीका की रचना की। वरदराज ने स्वयं ही वाचस्पति मिश% और उदयनाचय का उल्लेख किया।{ अत. वरदराज का समय उनके बाद में ही होगा '। सर्वदर्शनसंग्रह में भी वरदराज का उल्लेख है, जिसकी रचना माधवाचर्य ने चौदहवीं शताब्दी में की थी। अतः वरदराज का समय बारहवीं शती माना जाता हे। तकिकरक्षा मँ वरदराज ने इस बत क। विश्लेषण करने का प्रयास भी किया है वि; द्रव्य, गुण अदि पदार्थों का ज्ञान मोक्ष प्राप्ति में सीधा साधक नहीं हे, अतः उनका गौतम ने निरूपण नहीं किया हे। ८ तार्किकरक्षा मँ न्यायदर्शनं के अनुसार प्रमाण, प्रमेय अदि सोलह पदाय का निरूपण करते हए प्रमेय के मध्य में आत्मा, शरीर आदि बारह पदार्थों के साथ द्रव्य गुण आदि छः पदार्थों का भी विश्लेषण किया गया हे। । - आलोच्य दुस्तरगभीरतराल्‌ प्रबन्धान, वाचस्पतेरूदयनस्य त्था परेषाम्‌ । मयात्र समगृहात वावद्के, « नित्यं कथासु विर्जिंगीषुभिरेष धार्यः ।। - तरकिंकरा ध मोक्षे साक्षादनंगत्वादक्षपादर्न लक्षितम । तन्त्रान्तरानुसारेण षट्क॑ द्रव्याणि लक्ष्यते ।। - ताकिकरक्षा 9




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