विशिष्टाद्वैत - वेदान्त में प्रमेय-मीमांसा | Bishisthadwat Bedant Me Pramey Mimansa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वरूप के आधार पर भारतीय दर्शन को दो भागों में बॉटा. जा सकता है-
नास्तिक तथा आस्तिक। प्राय: यह कहा जाता है कि 'इश्वर' को मानना, न मानना , आस्तिक
और नास्तिक होना है, जैसा कि पाणिनि मानते हैं। पाणिनि के अनुसार परलोक बुद्धि वाला
आस्तिक और उससे भिन्न व्यक्ति नास्तिक कहा जाता किन्तु यह धारणा ठीक नहीं है,
क्योंकि मीमांसा, और सांख्य ईश्वर को नहीं मानते हैं फिर भी नास्तिक कहे जाते हैं।
आस्तिक और नास्तिक की एक दूसरी परिभाषा मनु ने दी है जो प्राय: सर्वमान्य है। मनु
के अनुसार वेद के प्रामाण्य को मानने वाला आस्तिक है तथा वेद को अप्रामाण्य मानने वाला
नास्तिक है।“
इस प्रकार वेद की निन्दा करने वाला नास्तिक है तथा वेद में विश्वास करने
वाला आस्तिक है। भारतीय दर्शन नास्तिक तथा आस्तिक के इसी स्वरूप के आधार पर दो
भागों-नास्तिक तथा आस्तिक में बॉटा गया है। नास्तिक दर्शन के अन्तर्गत चार्वाक, जेन
तथा बौद्ध दर्शन एवम् आस्तिक दर्शनों में सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक पूर्वमीमांसा तथा
उत्तरमीमांसा या वेदान्त की गणना होती है। इन्हें घड़्दशन कहा जाता है।
1. अस्ति नास्ति दिष्ट॑ मतिः। सिद्धान्तकौमुदी, 4/4/60 .
अस्ति. परलोकम् इति मतिर्यस्य स आस्तिक: , नास्ति परलोकम् इति मतिर्यस्य स
नास्तिक: । वहीं, 4/4/60, पर भट्टोजिदीक्षितकृत व्याख्या।
दे योवमन्येत ते मूले हेतु शास्त्रनयादिवज: |
स साधुभिबेहि: कार्यो: नास्तिको वेद निन््दक: । मनु0 2/11.
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