पुराणों में योगदर्शन और उसकी समीक्षा | Purano Me Yogdarshan Aur Uski Sameeksha

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Purano Me Yogdarshan Aur Uski Sameeksha by बबली पाण्डेय - Babli Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुराणों का रचना-स्थान तथा समय प्राचीन काल मे तीर्थ स्थानो मे पुराणो की कथा हुआ करती थी जिसे सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आया करते थे। यह प्रसिद्ध है कि नैमिषारण्य, जो उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले मे नेमिसार अथवा नीमसार के नाम से प्रसिद्ध है, मे साठ हजार ऋषियो को “सूत्र ने पुराणो की कथा सुनायी थी | इस प्रकार यह अनुमान किया जा सकता है कि ये तीर्थ स्थान ही पुराणो की रचना तथा श्रवण के स्थान रहे होँगे | सभी पुराणों की रचना एक ही तीर्थ अथवा क्षत्र मे हुईं इसे स्वीकार करना युक्तिसिगत नहीं प्रतीत होता। पौराणिक विवरणो से ज्ञात होता है कि वे निश्चयत भारत के विभिन्‍न भागों में अनेक कालो में रचे गये होंगे। विभिन्‍न पुराणो मे किसी एक विशेष तीर्थ स्थान, नग अथवा नदी का विशद्‌ तथा विस्तृत वर्णन पाया जाता है। उस तीर्थ के माहात्म्य की बृहद प्रशंसा की गई हे | कही-कही किसी स्थान विशेष के प्रति पक्षपात पूर्णं विवरण भी पाया जाता हे । उदाहरण के लिए पद्मपुराण में पुष्कर क्षेत्र की महिमा का अत्यन्त भव्य वर्णन मिलता हे । इसमे इसे समस्त तीर्थो मे श्रेष्ठ तथा महत्वपूर्ण कहा गया हे । अतः विद्वानों ने इन उल्लेखो कं आधार पर पुराणों के रचना-स्थल का अनुमान लगाने का प्रयास किया हे | दीक्षितार के मतानुसार वायु पुराण की रचना गया, ब्रहमवैवर्त्तं की उड़ीसा, मार्कण्डेय पुराण की रचना नर्मदा की घाटी मे मानी जा सकती हे | एक अन्य उल्लेख के अनुसार पुराणों के रचनास्थल निम्नाकित हे-ब्रहम-पुराण की रचना उड़ीसा, पद्म पुराण की पुष्कर, अग्नि पुराण की गया, कर्मं पुराण की वाराणसी, वाराह पुराण की मथुरा, वामन पुराण की स्थाणेश्वर ओर मत्स्य पुराण की नर्मदा की घाटी मे हुं ! पुराणों की रचना कब हुई इस विषय पर काफी मतभेद है | कुछ विद्वान यहाँ तक कि पुराण स्वयं अपनी रचना को वेदों के साथ-साथ या इससे पूर्व की बतलाते है। इस विषय में मत्स्य १-दीक्षितार, दि पुराण ए स्टडी, इ० हि० क्वा०, भाग -८, पृष्ठ, ४४७ २-एस० भीमशंकर राव, हिस्टारिकल इम्पार्टेस आफ दि पुराणाज, क्वा० ज० आ० हि० रि० सो०, भाग २, पृष्ठ८०




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