प्रेमचंद का कथा साहित्य और उन पर लिखी आलोचनाएँ | Premchand Ka Katha Sahitya Aur Un Par Likhi Aalochnayaen

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Premchand Ka Katha Sahitya Aur Un Par Likhi Aalochnayaen by गिरिजा राय - Girija Rai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्धी अनुकृतियाँ दोनो बुरी तरह सालने लगी थी। इनको राष्ट्रीय अभिमान तो था परन्तु वह अधिक मुखर होने का अवसर नही पा सका। किन्तु सामाजिक, धार्मिक पक्ष की विकृतियो को चित्रित करने मे कोई विशेष बाधा नही थी। अत भारतेन्दु-काल की समस्त साहित्यिक विधाओ मे राष्ट्रीय जागरण के स्वर के साथ-साथ सामाजिक जागरण का स्वर बड़ी सघनता से सुनायी पडता है। सामाजिक जागरण का स्वर राजनैतिक जागरण के स्वर से कही अधिक स्पष्ट ओर उग्र था। भारतेन्दु बाबू भी उपन्यास लेखन की ओर प्रवृत्त हए, किन्तु बहुत बाद मे। पूर्ण प्रकाश ओर चन्द्रप्रभा इनका सामाजिक उपन्यास है। इस काल के अन्य सामाजिक उपन्यासो मे भाग्यवती (श्रद्धानन्द फिल्लौरी, 1877), परीक्षा गुरू श्रीनिवासदास), “नूतन ब्रह्मचारी , सौ अजान एक सुजान (बालकृष्ण भट), निस्सहाय हिन्दू“(राधाकृष्णदास). विधवा विपत्ति(राघधाचरण गोस्वामी ओर देवी प्रसाद शर्मा) “श्यामा स्वप्न“(ठाकुर जगमोहन सिह), 'जया(कार्तिक प्रसाद खत्री), लवग लतिका कसुम-कमारी लीलावती वा आदर्शसती . “पुनर्जन्म वा सौतिया डाह^ अंगूठी का नगीना (किशोरी लाल गोस्वामी), 'सास पतोहू', बडा भाई “नये बाबू(गोपालराम गहमरी), “धूर्तं रसिकलाल `स्वतन्त्र रमा ओर परतन्त्र लक्ष्मी (लज्जाराम मेहता), 'अधखिला फूल“ ठेठ हिन्दी का ठाठˆ(अयोध्यासिह उपाध्याय 'हरिओध'), 'सौन्दर्योपासक', 'राधाकान्त'(ब्रजनन्दन सहाय), रामलाल^(मन्नन दिवेदी), वन जीवन वा प्रेम लहरी“(राधिका रमण प्रसाद सिह) आदि के नाम अग्रगण्य है। वास्तव मे इन सामाजिक उपन्यासो मे समाज के बुनियादी सत्यो की पकड नही है। समाज की सतह पर बहती हुई घटनाओं को पकड़ा गया है, उनका निरूपण किया गया है. उन घटनाओं ओर परिस्थितियो मे किसी पात्र को डालकर उसकी उन्नति अवनति कौ दिशार्ए अकित की गयी हं तथा उसके पाप-पुण्य ओर अन्यान्य क्रिया-कलापो का स्थूल चित्रण किया गया हं। इस बात को बहुत ही स्पष्ट ठग से दिखाने का प्रयास किया गया है कि अमुक परिस्थितियो मे पडकर मनुष्य भला या बुरा कर्म करने लगता है। इस काल के सारे सामाजिक उपन्यास सोदेश्यदहै यायो कहिए कि उपदेश ओर समाघान-प्रधान हैँ। हर उपन्यास मे समस्या का समाधान दिया गया है। इन सारे सामाजिक उपन्यासो के विषयों की परीक्षा करे तो हम पायेगे कि 1 5১ व्रिपुय म ममेदं ह कि মল এন माच मारतं শু বাপু কটা নালিঞ্চ करति ह या अ~




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