बाणभट्ट की कृतियों में प्रतिबिम्बित समाज एवं संस्कृति | Society And Culture As Reflected In The Works Of Banabhatta

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Society And Culture As Reflected In The Works Of Banabhatta  by जय नारायण - Jai Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धारां मिती हैं। एक विवात्घारा का प्रतिनिधित्व आनन्दवर्धन करते हैं और सर का राजे ¦! आनन्दवर्धन ने ध्वन्यालोक़ में कहा' है छि कचि को अपने पूर्ववर्ती' कवि से नि:संक्रोच हृूप से भाव ग्रहण कर लेना चाहिए 1“ उनका मत हैं कि रघमाओं की समानता में कवि की तंवाहिनी बदिः भी कारण होती है अधथाति तमान वर्णन कवि की पुतिभा ते भी हो जाते ই 125 ब्दा गहणम करने पर कि निंदा का पात्र नहीं होता है | राजेखर ने काव्यमीमाता में आनन्दवर्धन के उक्त मत्त का विरोध জিত है । उन्होंने दूमरें कवि के द्वारा प्रयुक्त गब्दार्थ के उपनिबन्धन मात्र क्षों हरण की ता प्रदान ङी है 15 राज्योजर ने अपने ग्रन्थ में गंब्दार्थ हरण के पाँच प्रकार इस तरह ते बतः अदत्त तथा प्रबन्ध 19 इन्होंने क्राव्यमीमाता ये है; पद्‌, पाट, मरै स्पष्ट कहा है कि अन्य थौंरियाँ तो समय बीतने पर विह्मृत ही जाती हैं फ्िन्तु वागी की बोरही पीड्री-दर-पीढ़ी छती है 10 इब्दार्टहटरण की' इस परम्परा की छाया ऐतिहातिक अभिश्यों तथा प्रशाश्तियों पर भी पड़ी । वत्त भादिद ने मन्‍्दतार अभिनेद्ध में केक बीती ভী জালিহাল ते नहीं ग्रहण किया अपितु उमके शक इलौोक $ की आधार-रिला ही मेघदूत का 65তা” श्लोक माना जाता है 172 इसी प्रकार चन्दे का के अजय अभिेद्ध का शक इलो कं: कालिदास के रु की याद दलिता है 17५ इतप्रढार इन त्यों के आलोक में यह कहा जा तक्ता है कि शब्दाय हम जी परम्परा सत्कृत ताहित्व मे एमग रोग की भाँति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही धी, जिससे बचने के की लेखको ने समय-समय पर सयेत धियि इत पुकार बार ता हि्त्यिक द्वेन में उन कवियों को देय दुष्टिपे देष्ते & जो राम-द्ेेम के कारण मनमानी बातें कहते ये । बाण के अनुसार वाचान एवं कामकारी नौग ही कुकवि हों जाते है 135 वस्तुतः नई वस्त्र गा वृजन करने वाता




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