अंत दर्शन | Antrdarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* श्रीहूरिः # छ ८ ९ तबद्रशान १-अलंकार मानव-प्रवत्ति अलंकार से अनुराग करती है, मनुष्य बात-बात में नूतनता अथवा चमत्कार लाने का प्रयत्न करता हैं । केवल अ“अलंकार-शासत्र” के नियमों तथा मेदोपमेर्दो के जानकार दी श्रलंकारो का प्रयोग करते हों ऐसी बात नदी; वरन्‌ अपढ़, मूर्ख तथा ग्रामीण मी प्रतिदिन बोलचाल में आलंकारिक भात्रा का उपयोग करते हैं। यद्यपि वे यह नहीं जानते कि उनकी भाषा में किस समय किस अलंकार का प्रयोग हो रहा है तथापि उनमें अलंकारता होती अ्रवश्य है। किसी बात में अडंगा लगानेवाले को वे कहते है,--“दाल भात में मूसरचंद |”? यह आलंकारिकों का उपमालंकार है। जन-समाज उपमाः श्रौर धवक्रोक्ति' का प्रयोग तो पग-पग पर करता है। जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं, इसका एक कारण नूतनता की चेष्या हे | एक दूसरा कारण भी है। मानव- प्रवृत्ति वीमत्स, कठोर एवं दुःखपूर्ण घटनाओं के कु सत्य को नहीं स्वीकार करती | अतः इन घटनाओं का वर्शन ऐसे ढंग से किया जाता है, जिससे वे उतनी अरुचिकर न ज्ञात हों--जितनी वे हैं। ऐसा करने का प्रयत्न करना भी भाषा में अलंकारता लाने का एक कारण है। “अमुक व्यक्ति मर गया” ऐसी कठोर एवं शोकपूर्ण घटना को इस रूप में कोई सुनना नहीं चाहता, इसी से लोग किसी की सृत्यु सूचित करने के लिये कहा करते हैं “अमुक का वैकुंठवास




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